Baba
Eyewitness report of pathetic Indian economy
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~ The below is courtesy of WhatsApp Forums ~
जो सामने मैं होता देख रहा हूं उसे आपके सामने प्रस्तुत कर रहा हूं :**1) मैंने भिलाई स्टील प्लांट (सेल) 1997 में ज्वाइन किया था तब प्लांट में लगभग 40000 कर्मचारी थे । सभी को उनकी सीनियोरिटी एवं पद के हिसाब से बराबर सेलरी मिलती थी । इस समय ठेका श्रमिक (Contract Labours) नहीं थे... नियमित कर्मचारी (Permanent employees) अपने 2-3-4 बच्चों एवं माता -पिता के साथ जीवन व्यतीत करते थे ।**2) इनकी सेलरी आस-पास के छोटे और मध्यम किसम के राशन /कपड़े /एवं अन्य दैनिक जीवन में इस्तेमाल किए जाने वाले वस्तुओं के दुकानों में खर्च हुआ करते थे ।**3) मतलब इनकी सेलरी से दुकानदार अपना एवं अपने पूरे परिवार का खर्च वहन करते थे ।**.....तब रूपिया एक सर से दूसरे सर से तीसरे चला करता था ।**4) आज 27 वर्ष बाद भिलाई स्टील प्लांट में नियमित कर्मचारी लगभग लगभग 11000 हैं। इन्हें ठीक-ठाक सेलरी मिलती है।**5) इनमें से अधिकांश कर्मचारी माह के शुरुवात में कार से राशन एवं अन्य जरूरी चीजें लेने डी मार्ट / माल चले जाते हैं।**6) संख्या के हिसाब से आज भी भिलाई स्टील प्लांट में काम करने वालों की संख्या लगभग 40,000 ही है, बदलाव ये है कि अब 11000 नियमित कर्मचारी ( Permanent Employees) एवं लगभग 30,000 ठेका श्रमिक ( Contract Labours) हैं।**7) मतलब नियमित की जगह मजदूरों की बाढ़ है इनमें से बहुत से ग्रेजुएट /पोस्ट ग्रेजुएट हैं। ये जो ठेका श्रमिक हैं इन्हें सेलरी बहुत कम मिलता है ।**8) ये मजदूर आस-पास के गांवों में रहते हैं, छोटे-छोटे दुकानों से रोज 50-75 रुपये का राशन लेते हैं ।**9) मतलब नियमित कर्मचारी (ज्यादा सेलरी) वाले बड़े मार्टों से सामान एवं मजदूर (कम रोजी वाले )छोटे-छोटे दुकानों से सामान ।.... यहां (इकानामी का) रुपयों का केंद्रीय करण हो रहा है। गरीबी-अमीरी की खाई लगातार बढ़ रही है।**10) और यह अमीरी-गरीबी की खाई हिन्दु-मुस्लिम वाली सरकार में लगातार तेजी से बढ़ रही है।**11) तब इंडिया 5वीं इकानामी हो भी जाय तो क्या फर्क पड़ता है।**12) भिलाई स्टील प्लांट में मजदूरों का बढ़ना ही रोजगार है तो आप ताली-थाली बजाकर कोरोना वायरस (बेरोजगारी)भगा सकते हैं। आपको मुबारक हो ।...प्रउत कभी ऐसा नहीं कहता है।**13) अगर युवा स्किल नहीं है तो स्किल बनाने का काम भी सरकार का ही है।**14) रही बिज़नेस स्टैंडर्ड की व जार्ज सोरोस की ऐसे कैरेक्टर के हमारे देश में अडानी-अंबानी, जिंदल, शिव नाडर आदि जैसे कई हैं ।**15) कैपिटेलिस्ट कहीं का भी हो लूटेगा ही और उसके द्वारा पाली-पोसी गई सरकारें एजेंट का ही काम करेगी ।*---------------------------------------*नोट : मेरा प्रहार वर्तमान व्यवस्था पर है आंकड़ों पर नहीं। यह साक्षात दिख रहा है : बेरोजगारी, गरीबी, महंगाई, असमानता लगातार बढ़ ही रही है।*
- Subodh Deo, from Durga City
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