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Tuesday, August 24, 2021

Voice of Baba


~ BABA'S ORIGINAL HANDWRITING ~



The above is a scan of Lord Shrii Shrii Anandamurtiji's own hand-written version of "The Voice of Baba" that is recited at every VSS camp.

You are welcome to download the image for your own personal files. Simply right click and select: "Save Image As." If you prefer not to download the files you may right click and select one of the "Open Link" options. Whether you download it or select "open link" and read on-line, you can open these images, zoom in, and easily read this inspiring message from Beloved Sadguru Baba.

The above scans are related with the following posting:


If you have any questions, please do not hesitate to write us:

anandamargauniversal1@yogasamsthanam.net


WARNING:
HERE BELOW IS A FAKE COPY OF BABA'S ORIGINAL 



WARNING:
THE ABOVE IS A FAKE COPY OF BABA'S ORIGINAL 

Special Discourse on VSS

Baba

== Special Discourse on VSS ==


The following discourse - "The Four Types of Service" - was delivered around the time when Baba created VSS. The actual date of the discourse in not known; we do know that it was a general darshan originally given in Hindi by Baba in Patna. To date, this discourse has never been printed or published - not in any language. Nor has it been officially translated from the original Hindi. We look forward to presenting an English translation soon. In this unique discourse, Baba discusses various aspects of VSS. So it is highly relevant to the posting, "Baba Story: VSS Related." - Eds


इसके पहले कई बार कहा गया था कि—मनुष्य एक ही आधार में—विप्र, क्षत्रिय, वैश्य, और शूद्र बनेंगे | जैसे जनसेवा में सबसे सर्वश्रेष्ठ है विप्रोचित सेवा अर्थात्‌ धर्म का प्रचार—मनुष्य में सद्बुद्धि को जगाना |
किन्तु यह जो मनुष्य की साधुता है, इसकी रक्षा के लिए, ऊपर में एक कड़ा, आवरण की ज़रूरत होती है | मान लो बहुत-से स्कूल, college, सब बना लिए हो, factories बना लिए हो, dams बना लिए हो; मगर उन सबों की सुरक्षा का भी तो प्रबन्ध करना है | मैंने कहा था कि—अगर कछुआ के पीठ पर कड़ा आवरण नहीं रहता, अगर बेल पर कड़ा आवरण नहीं रहता; तो कौआ उन्हें खा ही लेता | तो तुम्हारी साधुता तुम्हारी विद्वत्ता, तुम्हारी साधकता की रक्षा के लिए, तुम में क्षत्रियता भी रहनी चाहिए |

["बाबा, बाबा, बाबा !"]

समाज की रक्षा, माँ-बहनों के सम्मान की रक्षा, हर तरह की रक्षा के लिए; देश की सुरक्षा, बाहरी हमला से समाज को राष्ट्र को बचाने के लिए—तुम्हें क्षात्र-शक्ति का अनुशीलन करना है | इसमें थोड़ी-सी भी ढिलाई नहीं होनी चाहिए | जो आत्मरक्षा का प्रबन्ध नहीं करते हैं, उनकी तरक्की नहीं हो सकती है | प्राचीन काल में लोग कहते थे कि—”योगी लोग, मुनि लोग सुशासित राज्य में वास करेंगे; जहाँ राज्य मज़बूत है, राजा मज़बूत है |” वह तो राज-तन्त्र का युग था इसलिए “राजा मज़बूत है”; आज के युग में कहेंगे—जहाँ government मज़बूत है | और नागरिकों को इसलिए government को भी मज़बूत बनाने के लिए, सुरक्षा के लिए, प्रबन्ध करना चाहिए | बाहर से हमला होने से फ़ौजी भाइयों को भी help करना पड़ेगा; देश की सुरक्षा के लिए | इसलिए क्षात्र-शक्ति की आवश्यकता है | उधर ढिलाई नहीं हो |

तो, स्थाई सेवा है विप्रोचित सेवा | मगर उस सेवा को help करनेवाली है क्या ? क्षात्रशक्ति | अच्छा, मनुष्य के लिए अन्न-वस्त्र की समस्या है और समाज में तरह-तरह की समस्याएँ हैं, उन समस्याओं के समाधान के लिए, socio-economic structure को मज़बूत बनाना है | यह जो socio-economic structure को मज़बूत बनाने की चेष्टा, मज़बूत बनाने का प्रयास वही है—वैश्योचित सेवा | जो मनुष्य भूखे हैं मर रहे हैं उस वक्त उनको तो तुम दर्शन नहीं समझाओगे; उनको खाना दोगे, कपड़ा दोगे, दवा दोगे | वहाँ—वैश्योचित सेवा | कहीं निर्बल पर सबल जुर्म कर रहा है, वहाँ तो निर्बल को तुम तो दार्शनिक तत्त्व नहीं सुनाओगे; खाना भी नहीं दोगे; उसकी रक्षा के लिए प्रबन्ध करोगे |

विप्रोचित है स्थाई सेवा | मगर विप्रोचित सेवा में मदद करनेवाली सेवा है—क्षत्रियोचित सेवा, वैश्योचित सेवा |जिनके पास मान लो बुद्धि नहीं है, विप्रोचित सेवा नहीं कर सकेंगे; शक्ति नहीं है क्षत्रियोचित सेवा नहीं कर सकेंगे; पैसा नहीं है वैश्योचित सेवा नहीं कर सकेंगे; मगर बुद्धि अगर नहीं हो शरीर तो है, मेहनत के द्वारा समाज की सेवा वे कर सकेंगे—तो, वह हुआ शूद्रोचित सेवा | मगर सबसे अच्छा होता है कि—एक ही मनुष्य अगर एक ही आधार में चारों बनें | और उसी से समाज का ठोस काम होगा |

साधक एक ही आधार में विप्र क्षत्रिय वैश्य और शूद्र बनेंगे | इसमें कहीं भी कुछ भी, थोड़ी-सी भी ढिलाई नहीं हो | तुम लोग सतर्क हो जाओ, सजाग हो जाओ और हर तरह से तैयार रहो | ताकि तुम्हारी सेवा से समूचा समाज, तथा समूचा मानव समाज उपकृत हो |

और कल ही सन्ध्या मैंने कहा था कि— सब कोई परमात्मा के सन्तान हैं | और सब कोई जब परमात्मा के प्यारे हैं; तो, वे बुद्धिमान हों चाहे निर्बुद्धि हों; बलवान हों चाहे निर्बल हों; पण्डित हों चाहे मूर्ख हों—सब जब परमात्मा के प्यारे हैं; तो, सब कोई कुछ न कुछ अवश्य कर सकेंगे | कोई तुच्छ नहीं हैं, हीन नहीं हैं, नीच नहीं हैं |

तैयार हो जाओ, देखोगे बहुत कुछ कर सकोगे | तुम जब काम करना शुरू करोगे, जब कूद पड़ोगे तब देखोगे कि—तुम में कितनी शक्ति छिपी हुई थी |

कल्याणमस्तु

["बाबा, बाबा, बाबा !"]


General Darshan, Patna


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