Baba
This email contains six sections:
1. Bangla Quote: ৰাড়ার সঙ্গে-সঙ্গে এটাও হৰে
2. PS #2129: You are transcendental, You are beyond everything....
3. Posting: बाबा कथा: कलकता में बाबा का दर्शन
4. Holy Teaching: Hypocrisy exposed -> Petty people have left behind...
5. What signifies one's progress - Ananda Vanii
6. Links
बाबा,
नमस्कार,
यह 1981 की बात है जब बाबा धर्मं समीक्षा कलकत्ते में कर रहे थे। मैं धर्मं समीक्षा का अर्थ नहीं जानता था। न ही यह जानता था कि उसमें या उससे क्या होता है। एक दिन अचानक मेरी कलकत्ते की यात्रा हो गयी। मैंने सोचा कि कलकत्ते में जाकर वहाँ बाबा प्रभु का दर्शन करूँगा और वही से अपने गांव मिझौली चला जाऊँगा। बाबा उस समय “मधुमालञ्च” में रहते थे। बाबा द्वारा चरणरज स्वप्न में देने के कुछ सप्ताह बाद की यह सब बात है। पहले मैं कलकता--जोधपुर पार्क वाले कार्यालय में गया, और उसमे ऊपरी तल्ले पर जाकर ठहरा। ऊपरी तल्ला तिरपाल से छाया हुआ था, तथा भोजन बनाने की भी वहीं व्यवस्था थी। हमने भी ‘मेस’ में अपने भोजन का इन्तजाम करा लिया।
मैं बाबा का दर्शन करने उनके आवास में चला। वहाँ गया तो पता चला कि बाबा आज दर्शन नहीं देंगे। वे केवल कार्यकर्ताओ की बैठक को भवन स्थित हॉल में संबोधित करेंगे। बाहरी लोगो को दर्शन नहीं हो सकेगा। यह सुनकर मै और उपस्थित दर्शनार्थी भक्तगण उदास हो गये। उस बाबा आवास से जो सीढ़ी बाबा के तल्ले से निकलती है – वह नीचे दो ओर बँट जाती है। एक तो वह हॉल में चली जाती है और दूसरी बाहर की ओर निकल जाती है। बाबा का दर्शन नहीं होगा – यह सुनकर मैंने उपस्थित मार्गियों से कहा कि - “बाबा का दर्शन अवश्य होगा – कीर्त्तन करो|” बस, शुरू हो गया – ‘बाबा नाम केवलम्’। कुछ ही क्षणों बाद बाबा हॉल में आने के लिए ऊपर से चले। जहाँ से सीढ़ी दो ओर बँट जाती है, वहाँ पर जब प्रभुजी आये तो उन्होंने कहा – “आज मै इधर से जाऊँगा|” कहना न होगा कि वे बाहर जाने वाली सीढ़ी से उतरने कि बात कर रहें थे। अब भला किसकी हिम्मत जो बाबा भगवान को रोके? अब बाबा श्री श्री आनन्दमूर्ति जी हम लोगो के बीच में आये और आते ही बोले – “मेरे बेटे बेटियों! तुम् लोग ठीक से तो हो? (अंग्रेजी में वे बोले थे|) सभी हर्षित मुद्रा में में बोले – “हाँ बाबा, हम ठीक से हैं|” इसके बाद हरि जी सभा भवन में चले गये। मैं बाबा का दर्शन कर बहुत हर्षित था। मेरे मन में यह भाव आ रहा था कि यदि हम लोग कीर्त्तन नहीं करते तो शायद प्रिय बाबा का दर्शन नहीं होता।
धर्मसमीक्षा की तैयारी
मैंने सोचा कि ए मन, बाबा का दर्शन तो हो ही गया, अब चलो अपने गाँव मिझौली। रिक्शा लेकर जब मैं जोधपुर मार्केट के नजदीक पहुँच चुका था – एक अवधूत दादा आचार्य जी से भेंट हो गयी। वे कुछ दिनों पहले धनबाद में ही पदस्थापित थे। वे बाबा क्वार्टर ही जा रहे थे। अवधूत दादा ने मुझे देखते ही कहा – “अरे, आप धनबाद से अकेले आये है? उनका आशय धर्मं समीक्षा होने से था। उन्होंने सोचा कि मैं धर्मं समीक्षा के लिए आया हूँ। मैंने बिना सोचे समझे ही कह दिया – “हाँ दादा जी, हम अकेले आये है। कितने लोगों के साथ आयें?” अवधूत दादा एक कार्यकर्त्ता थे। हम लोग धनबाद में साथ-साथ रहे थे तथा मार्ग का कार्य भी किये थे। इसलिए हम कुछ दिल खोल कर उनसे बात भी कर लेते थे। उन्होंने कहा – “अरे, आप कहाँ जा रहें है? धर्मसमीक्षा आप की हो गयी?” मैंने कहा – धर्मसमीक्षा क्या?” उन्होंने कहा – “हे भगवान, चलिये चलिये। बाबा का क्वार्टर चलिये। वहाँ धर्मंसमीक्षा होगी|” मैनें कहा – “बाबा का दर्शन मैंने कर लिया, अब घर जा रहा हूँ|”
उन्होंने मुझे समझाया और बड़ी कठिनाई से समझाया कि उसमे बाबा के बिलकुल समीप में बैठने का अवसर मिलता है। एकदम P.C. के जैसा। मैंने कहा कि मेरा P.C. हो चुका है, तो उन्होंने कहा कि अबकी बार भी P.C. की तरह ही होगा। मैंने उनकी बात को मानकर रिक्शे को पुनः उसी ओर चलने का निर्देश दिया। अवधूत दादा जी ने रास्ते में पुछा कि मैंने कुछ मार्ग का काम किया है? मैंने कहा कि दादाजी, इधर तो हमने कुछ भी नहीं किया है। इसपर वे बोले – “तब तो बड़ा गड़बड़ है। वहाँ तो आप निकाल दिये जाइयेगा और धर्मसमीक्षा में भेजने वाले सन्यासी दादा को भी डाँट पड़ेगी|” मैंने कहा कि सच्चाई तो यही है कि मैंने इधर कुछ समय से काम नहीं किया है। बात करते-करते हम लोग बाबा आवास में चले आये। धर्मंसमीक्षा के प्रभारी अवधूत दादा से हमारी भेंट कराई गयी। उन्होंने भी यही पूछा कि मैंने मार्ग का काम किया है या नहीं? मैंने फिर वही उत्तर दिया। उन्होंने कहा कि – “तब आप तो बाबा के पास से खदेड़ाईयेगा ही, हमें भी डाँट उनसे खिलवाईयेगा|”
परम प्रभु, बाबा चरण में
देवकुमार
Shrii Bhakti jii presents this story:
- We are very grateful to Shrii Bhakti for his immense contribution of putting the hardly legible material into a usable electronic format. Without his efforts it would not have been possible to publish this story. - Eds
This email contains six sections:
1. Bangla Quote: ৰাড়ার সঙ্গে-সঙ্গে এটাও হৰে
2. PS #2129: You are transcendental, You are beyond everything....
3. Posting: बाबा कथा: कलकता में बाबा का दर्शन
4. Holy Teaching: Hypocrisy exposed -> Petty people have left behind...
5. What signifies one's progress - Ananda Vanii
6. Links
बाबा कथा: कलकता में बाबा का
दर्शन
बाबा,
नमस्कार,
यह 1981 की बात है जब बाबा धर्मं समीक्षा कलकत्ते में कर रहे थे। मैं धर्मं समीक्षा का अर्थ नहीं जानता था। न ही यह जानता था कि उसमें या उससे क्या होता है। एक दिन अचानक मेरी कलकत्ते की यात्रा हो गयी। मैंने सोचा कि कलकत्ते में जाकर वहाँ बाबा प्रभु का दर्शन करूँगा और वही से अपने गांव मिझौली चला जाऊँगा। बाबा उस समय “मधुमालञ्च” में रहते थे। बाबा द्वारा चरणरज स्वप्न में देने के कुछ सप्ताह बाद की यह सब बात है। पहले मैं कलकता--जोधपुर पार्क वाले कार्यालय में गया, और उसमे ऊपरी तल्ले पर जाकर ठहरा। ऊपरी तल्ला तिरपाल से छाया हुआ था, तथा भोजन बनाने की भी वहीं व्यवस्था थी। हमने भी ‘मेस’ में अपने भोजन का इन्तजाम करा लिया।
मैं बाबा का दर्शन करने उनके आवास में चला। वहाँ गया तो पता चला कि बाबा आज दर्शन नहीं देंगे। वे केवल कार्यकर्ताओ की बैठक को भवन स्थित हॉल में संबोधित करेंगे। बाहरी लोगो को दर्शन नहीं हो सकेगा। यह सुनकर मै और उपस्थित दर्शनार्थी भक्तगण उदास हो गये। उस बाबा आवास से जो सीढ़ी बाबा के तल्ले से निकलती है – वह नीचे दो ओर बँट जाती है। एक तो वह हॉल में चली जाती है और दूसरी बाहर की ओर निकल जाती है। बाबा का दर्शन नहीं होगा – यह सुनकर मैंने उपस्थित मार्गियों से कहा कि - “बाबा का दर्शन अवश्य होगा – कीर्त्तन करो|” बस, शुरू हो गया – ‘बाबा नाम केवलम्’। कुछ ही क्षणों बाद बाबा हॉल में आने के लिए ऊपर से चले। जहाँ से सीढ़ी दो ओर बँट जाती है, वहाँ पर जब प्रभुजी आये तो उन्होंने कहा – “आज मै इधर से जाऊँगा|” कहना न होगा कि वे बाहर जाने वाली सीढ़ी से उतरने कि बात कर रहें थे। अब भला किसकी हिम्मत जो बाबा भगवान को रोके? अब बाबा श्री श्री आनन्दमूर्ति जी हम लोगो के बीच में आये और आते ही बोले – “मेरे बेटे बेटियों! तुम् लोग ठीक से तो हो? (अंग्रेजी में वे बोले थे|) सभी हर्षित मुद्रा में में बोले – “हाँ बाबा, हम ठीक से हैं|” इसके बाद हरि जी सभा भवन में चले गये। मैं बाबा का दर्शन कर बहुत हर्षित था। मेरे मन में यह भाव आ रहा था कि यदि हम लोग कीर्त्तन नहीं करते तो शायद प्रिय बाबा का दर्शन नहीं होता।
धर्मसमीक्षा की तैयारी
मैंने सोचा कि ए मन, बाबा का दर्शन तो हो ही गया, अब चलो अपने गाँव मिझौली। रिक्शा लेकर जब मैं जोधपुर मार्केट के नजदीक पहुँच चुका था – एक अवधूत दादा आचार्य जी से भेंट हो गयी। वे कुछ दिनों पहले धनबाद में ही पदस्थापित थे। वे बाबा क्वार्टर ही जा रहे थे। अवधूत दादा ने मुझे देखते ही कहा – “अरे, आप धनबाद से अकेले आये है? उनका आशय धर्मं समीक्षा होने से था। उन्होंने सोचा कि मैं धर्मं समीक्षा के लिए आया हूँ। मैंने बिना सोचे समझे ही कह दिया – “हाँ दादा जी, हम अकेले आये है। कितने लोगों के साथ आयें?” अवधूत दादा एक कार्यकर्त्ता थे। हम लोग धनबाद में साथ-साथ रहे थे तथा मार्ग का कार्य भी किये थे। इसलिए हम कुछ दिल खोल कर उनसे बात भी कर लेते थे। उन्होंने कहा – “अरे, आप कहाँ जा रहें है? धर्मसमीक्षा आप की हो गयी?” मैंने कहा – धर्मसमीक्षा क्या?” उन्होंने कहा – “हे भगवान, चलिये चलिये। बाबा का क्वार्टर चलिये। वहाँ धर्मंसमीक्षा होगी|” मैनें कहा – “बाबा का दर्शन मैंने कर लिया, अब घर जा रहा हूँ|”
उन्होंने मुझे समझाया और बड़ी कठिनाई से समझाया कि उसमे बाबा के बिलकुल समीप में बैठने का अवसर मिलता है। एकदम P.C. के जैसा। मैंने कहा कि मेरा P.C. हो चुका है, तो उन्होंने कहा कि अबकी बार भी P.C. की तरह ही होगा। मैंने उनकी बात को मानकर रिक्शे को पुनः उसी ओर चलने का निर्देश दिया। अवधूत दादा जी ने रास्ते में पुछा कि मैंने कुछ मार्ग का काम किया है? मैंने कहा कि दादाजी, इधर तो हमने कुछ भी नहीं किया है। इसपर वे बोले – “तब तो बड़ा गड़बड़ है। वहाँ तो आप निकाल दिये जाइयेगा और धर्मसमीक्षा में भेजने वाले सन्यासी दादा को भी डाँट पड़ेगी|” मैंने कहा कि सच्चाई तो यही है कि मैंने इधर कुछ समय से काम नहीं किया है। बात करते-करते हम लोग बाबा आवास में चले आये। धर्मंसमीक्षा के प्रभारी अवधूत दादा से हमारी भेंट कराई गयी। उन्होंने भी यही पूछा कि मैंने मार्ग का काम किया है या नहीं? मैंने फिर वही उत्तर दिया। उन्होंने कहा कि – “तब आप तो बाबा के पास से खदेड़ाईयेगा ही, हमें भी डाँट उनसे खिलवाईयेगा|”
परम प्रभु, बाबा चरण में
देवकुमार
Shrii Bhakti jii presents this story:
- We are very grateful to Shrii Bhakti for his immense contribution of putting the hardly legible material into a usable electronic format. Without his efforts it would not have been possible to publish this story. - Eds
== Section 2: Bangla Quote ==
ৰাড়ার সঙ্গে-সঙ্গে এটাও হৰে
“এই extra-cerebral knowledge ওটাও একটা natural জিনিস হিসাৰে স্বাভাবিক জিনিস হিসাৰেই ক্রমশঃ মানুষের মধ্যে develop করতে থাকৰে | এটা সাধারণ মানুষ যে তার মধ্যেও extra-cerebral memory অনেক খানি ৰেশি করে জাগতে থাকৰে | ওটাকার অস্বাভাবিক কিছু মনে করা হৰে না | মনের পরিধি ৰাড়ছে | মনের পরিধি ৰাড়ার সঙ্গে-সঙ্গে এটাও হৰে | সুতরাং যে কোনও মানুষের পক্ষে গত জন্ম বা তার আগেকার জন্মের কথা মনে করা খুৰই সহজ হৰে | হয়তো ছয়-সাত জন্ম আগেকার কথা মনে করা সক্ত হৰে | কিন্তু এক দুটো জন্ম সে সহজেই মনে করতে পারৰে | আঁঽ ? আর দুজন মানুষে দেখা হয়ে গেল, পরিচয় নেই, কিছু নেই | এক জনের মনে হ’ল---”আরে, তুই তো আমার মাসতুত ভাই ছিলি” | ৰলে, “হ্যাঁ, হ্যাঁ তুই তো আমার মাসতুত ভাই ছিলি” |
[হাসি]
এটা অসম্ভব কিছু নয় | বা কষ্টকর কিছু নয় | এওগুলোও হয়ে যাৰে |” ধীরে-ধীরে দেখো |” (1)
Reference
1. MGD,11-Jan-79, অপ্রকাশিত, ১১ জানুয়ারি ১৯৭৯
You are transcendental, You are beyond everything - Is that why You come secretly?
PS Intro: This Prabhat Samgiita depicts the madhura bhava - where the bhakta has a most intimate and loving relation with Parama Purusa with the closest proximity.
Ananda Marga Philosophy states, "One of the many bhávas is madhura bháva. Madhura bháva is a very exalted bháva, for this bháva fills the mind with sweetness and bliss and leads the aspirant to the closest proximity of the Lord. To a person who is predominantly a devotee of the Lord, everything tastes sweet, there is nothing bitter in the creation of Parama Puruśa. He is attracting you through the ectoplasmic world, binding you through the bonds of love." (1)
"Tomáy ámáy gopan dekhá,hobe priyo maner końe..." (Prabhat Samgiita #2129)
Purport:
O’ Parama Purusa, O’ my dearmost, our intimate meeting, our sharing of the heart, will happen in the remote corner of my mind. You will grace me by coming. There I will talk with You - I will whisper my inner feeling to You. Nobody will know and nobody will see – and also nobody will understand about this intimate relation of ours.
O’ Divine One, You will arrive in my most anticipated, overflowing heart with the softness of flowers. Adorned by garlands, You will graciously take Your seat. In the sweet atmosphere of that illuminating moon-lit, full moon night, we'll be together in the madhuban (abode of nectar) of my mind.
O’ my dearmost Baba, whatever little I understand about You and whatever little I know of You, I know that You are the Infinite Entity, who is beyond words and language. You can't be held by thinking or the mastery of knowledge. You are above such limited expression. Nobody can sing Your glory with their own voice. You are transcendental. You are beyond everything. Is that why You come secretly?
Baba, O’ Parama Purusa, I will see You in the madhuban of my heart, in the sweet and divinely vibrated place deep in the recesses of my mind. Please shower Your causeless grace by giving me parabhakti...
Reference:
1. Namámi Krśńasundaram, Disc: 27
Note: If you would like the audio file of the above Prabhat Samgiita kindly write us.
Ananda Marga philosophy states, "In the annals of human history, many truths and falsehoods have been recorded. Attempts have been made to belittle the importance of great personalities, to erase them from the pages of history, and often small and insignificant people have been magnified and presented as great. But none of these attempts has been successful. Everything is written on the pages of eternal time exactly as it happened; the selfish and vain efforts of petty people have left behind only scornful mirth and derisive laughter on the vast canvas of eternal time." (1)
In the above quote Baba is guiding us that anti-social elements or bad people highlight themselves and distort history. But in due course they get exposed and their real status is reveald amongst and put in the garbage.
That is what has happened here. Following examples demonstrate that in at last two scenarios Mrs. Indira Gandhi’s name has been removed. Below is the related news and comment courtesy of zeenews-India & Indian Express.
News - Govt removes Indira, Rajiv Gandhi's names from 'Hindi Diwas' awards
"As per reports, the awards in question are - 'Indira Gandhi Rajbhasha Puraskar' and 'Rajiv Gandhi Rashtriya Gyan-Vigyan Maulik Pustak Lekhan Puraskar'. These will now be known as 'Rajbhasha Kirti Puraskar' and 'Rajbhasha Gaurav Puraskar', respectively.
The awards are given by the Ministry of Home Affairs each year on 'Hindi Diwas' for progressive use of the language." (2)
Comment: We are living in a democracy , not monarchy. Independent India emerged because of the sacrifice & dedication of many freedom fighters not because of any royal family-- so due credits goes to the real hero's - the way NDA named it now. Congrats !! (3)
News - Stamps with Indira, Rajiv Gandhi discontinued
"Two stamps featuring Indira Gandhi and Rajiv Gandhi, launched by the Department of Posts (DoP) in December 2008 as part of its series titled Builders of Modern India, have been discontinued, an RTI query by The Indian Express has revealed. The government now plans to introduce stamps under a new series featuring Deendayal Upadhyaya, Jayaprakash Narayan, Syama Prasad Mookerjee and Ram Manohar Lohia in the coming months." (4)
References
1. Namah Shivaya Shantaya, Disc: 15
2. zeenews-India
3. zeenews-India
4. Indian Express
“A sádhaka is verily a soldier. The pricks of thorns on the difficult path signify one’s progress. The collective welfare of the universe is the crowning glory of one’s victory.” (Ananda Vanii #2)
Note 1: The above is one of Baba’s original Ananda Vaniis. These original and true Ananda Vaniis are unique, eternal guidelines that stand as complete discourses in and of themselves. They are unlike Fake Ananda Vaniis which are fabricated by most of the groups - H, B etc.
“এই extra-cerebral knowledge ওটাও একটা natural জিনিস হিসাৰে স্বাভাবিক জিনিস হিসাৰেই ক্রমশঃ মানুষের মধ্যে develop করতে থাকৰে | এটা সাধারণ মানুষ যে তার মধ্যেও extra-cerebral memory অনেক খানি ৰেশি করে জাগতে থাকৰে | ওটাকার অস্বাভাবিক কিছু মনে করা হৰে না | মনের পরিধি ৰাড়ছে | মনের পরিধি ৰাড়ার সঙ্গে-সঙ্গে এটাও হৰে | সুতরাং যে কোনও মানুষের পক্ষে গত জন্ম বা তার আগেকার জন্মের কথা মনে করা খুৰই সহজ হৰে | হয়তো ছয়-সাত জন্ম আগেকার কথা মনে করা সক্ত হৰে | কিন্তু এক দুটো জন্ম সে সহজেই মনে করতে পারৰে | আঁঽ ? আর দুজন মানুষে দেখা হয়ে গেল, পরিচয় নেই, কিছু নেই | এক জনের মনে হ’ল---”আরে, তুই তো আমার মাসতুত ভাই ছিলি” | ৰলে, “হ্যাঁ, হ্যাঁ তুই তো আমার মাসতুত ভাই ছিলি” |
[হাসি]
এটা অসম্ভব কিছু নয় | বা কষ্টকর কিছু নয় | এওগুলোও হয়ে যাৰে |” ধীরে-ধীরে দেখো |” (1)
Reference
1. MGD,11-Jan-79, অপ্রকাশিত, ১১ জানুয়ারি ১৯৭৯
== Section 3: Prabhat Samgiita ==
You are transcendental, You are beyond everything - Is that why You come secretly?
PS Intro: This Prabhat Samgiita depicts the madhura bhava - where the bhakta has a most intimate and loving relation with Parama Purusa with the closest proximity.
Ananda Marga Philosophy states, "One of the many bhávas is madhura bháva. Madhura bháva is a very exalted bháva, for this bháva fills the mind with sweetness and bliss and leads the aspirant to the closest proximity of the Lord. To a person who is predominantly a devotee of the Lord, everything tastes sweet, there is nothing bitter in the creation of Parama Puruśa. He is attracting you through the ectoplasmic world, binding you through the bonds of love." (1)
"Tomáy ámáy gopan dekhá,hobe priyo maner końe..." (Prabhat Samgiita #2129)
Purport:
O’ Parama Purusa, O’ my dearmost, our intimate meeting, our sharing of the heart, will happen in the remote corner of my mind. You will grace me by coming. There I will talk with You - I will whisper my inner feeling to You. Nobody will know and nobody will see – and also nobody will understand about this intimate relation of ours.
O’ Divine One, You will arrive in my most anticipated, overflowing heart with the softness of flowers. Adorned by garlands, You will graciously take Your seat. In the sweet atmosphere of that illuminating moon-lit, full moon night, we'll be together in the madhuban (abode of nectar) of my mind.
O’ my dearmost Baba, whatever little I understand about You and whatever little I know of You, I know that You are the Infinite Entity, who is beyond words and language. You can't be held by thinking or the mastery of knowledge. You are above such limited expression. Nobody can sing Your glory with their own voice. You are transcendental. You are beyond everything. Is that why You come secretly?
Baba, O’ Parama Purusa, I will see You in the madhuban of my heart, in the sweet and divinely vibrated place deep in the recesses of my mind. Please shower Your causeless grace by giving me parabhakti...
Reference:
1. Namámi Krśńasundaram, Disc: 27
Note: If you would like the audio file of the above Prabhat Samgiita kindly write us.
== Section 4:
Holy Teaching ==
Petty people have left behind only
scornful mirth and derisive laughter
Ananda Marga philosophy states, "In the annals of human history, many truths and falsehoods have been recorded. Attempts have been made to belittle the importance of great personalities, to erase them from the pages of history, and often small and insignificant people have been magnified and presented as great. But none of these attempts has been successful. Everything is written on the pages of eternal time exactly as it happened; the selfish and vain efforts of petty people have left behind only scornful mirth and derisive laughter on the vast canvas of eternal time." (1)
In the above quote Baba is guiding us that anti-social elements or bad people highlight themselves and distort history. But in due course they get exposed and their real status is reveald amongst and put in the garbage.
That is what has happened here. Following examples demonstrate that in at last two scenarios Mrs. Indira Gandhi’s name has been removed. Below is the related news and comment courtesy of zeenews-India & Indian Express.
News - Govt removes Indira, Rajiv Gandhi's names from 'Hindi Diwas' awards
"As per reports, the awards in question are - 'Indira Gandhi Rajbhasha Puraskar' and 'Rajiv Gandhi Rashtriya Gyan-Vigyan Maulik Pustak Lekhan Puraskar'. These will now be known as 'Rajbhasha Kirti Puraskar' and 'Rajbhasha Gaurav Puraskar', respectively.
The awards are given by the Ministry of Home Affairs each year on 'Hindi Diwas' for progressive use of the language." (2)
Comment: We are living in a democracy , not monarchy. Independent India emerged because of the sacrifice & dedication of many freedom fighters not because of any royal family-- so due credits goes to the real hero's - the way NDA named it now. Congrats !! (3)
News - Stamps with Indira, Rajiv Gandhi discontinued
"Two stamps featuring Indira Gandhi and Rajiv Gandhi, launched by the Department of Posts (DoP) in December 2008 as part of its series titled Builders of Modern India, have been discontinued, an RTI query by The Indian Express has revealed. The government now plans to introduce stamps under a new series featuring Deendayal Upadhyaya, Jayaprakash Narayan, Syama Prasad Mookerjee and Ram Manohar Lohia in the coming months." (4)
References
1. Namah Shivaya Shantaya, Disc: 15
2. zeenews-India
3. zeenews-India
4. Indian Express
== Section 5:
Ananda Vanii ==
What signifies one's progress
“A sádhaka is verily a soldier. The pricks of thorns on the difficult path signify one’s progress. The collective welfare of the universe is the crowning glory of one’s victory.” (Ananda Vanii #2)
Note 1: The above is one of Baba’s original Ananda Vaniis. These original and true Ananda Vaniis are unique, eternal guidelines that stand as complete discourses in and of themselves. They are unlike Fake Ananda Vaniis which are fabricated by most of the groups - H, B etc.
== Section 6:
Links ==
Recent postings
Type of fanatics that are assets to society
How fertile green regions become deserts
Other topics of interest
Dada V's hypocrisy unmasked
What about false Baba story
Recent postings
Type of fanatics that are assets to society
How fertile green regions become deserts
Other topics of interest
Dada V's hypocrisy unmasked
What about false Baba story