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Monday, June 4, 2018

Deadly: place sadhana + 3 more

Baba

Deadly: place sadhana

Namaskar,

Sitting on this type of structure and doing sadhana is extremely dangerous and deadly. Why?



(A) Baba warns that one should sit in sadhana in a safe place otherwise if one falls the may incur a serious head injury.

Should the body fall, least injury to the head

Ananda Marga philosophy states, “The demonstration further showed that while the samádhi experienced remains in the subconscious, sádhakas may manage to keep some control over their bodies; they may stand in the beginning and sit later on without help. But the unconscious helps only slightly and indirectly in the subconscious mind; therefore, once the subconscious fully gives way to the unconscious, the control is lost and the body falls. That is why sádhaná has to be performed sitting in a firm ásana (posture) and on a blanket or other protection, so that, should the body fall, there may be the least possible injury to the head.” (1)

(B) There were cases of Wts doing sadhana on small rocky cliffs etc - and in one particular incident the worker fell and died of a head injury. The Wt fell because he had fallen asleep in sadhana. It was a tragic and gruesome death.

(C) It should be noted that one can make a yantra and do sadhana there. But afterwards, one must destroy that yantra cakra. Because if it is not destroyed and someone else comes and sits there for sadhana, then all their bad samskaras will be shifted to you. And all your good samskaras will go to them. That is a deadly recipe.

(D) By doing sadhana in the above type of structure, ie. yantra, two very negative outcomes come could to bear. The aspirant (sadhaka Y) might severely hurt themselves or even die prematurely by falling. Or all their positive samskaras will diverted to someone else, and they (sadhaka Y) will take on that other person’s negative samskaras. In that case, sadhaka Y will have all of their own negative microvita as well as all the negative microvita of that other person. Essentially sadhaka Y will incur a lot of sin. What to speak of attaining salvation, sadhaka Y may degenerate to a lower creature like bugs - either in this life or the next life .

So watch out if you see anyone has taken this path of self destruction - help them.

In Him,
Liilananda

Reference
1. Ananda Vacanamrtam - 33, Sálokya, Sámiipya, Sáyujya, Sárúpya, Sárśt́hi


== Section 2: Prabhat Samgiita ==

You have decorated all

“Raunga beraunge sabáre sajáyecho,tomár manomata sáj je diyecho...” (Prabhat Samgiita #0338)

Purport:

O’ Parama Purusa, You have decorated all of creation with a panorama colours, given everything new splendour, and granted decor according to Your wish. Some You made as inanimate objects, and others as plants, animals, and human beings. You anointed each shape and form according to Your desire.

Baba, You coloured and dyed the refulgence of the dawn, and in a flash spread it across the horizon to milky ways. You have applied greenness to the creepers and trees and filled my mind with peace and satiated my soul with this green vegetation.

O’ Parama Purusa Baba, You have infused sweetness in the human mind and heart and filled the human psyche with love, affection, bhakti, and sacrifice. With the stroke of Your colour and brush, You have brought the humans very close to divinity, and blessed and elevated them to the status of veritable gods...


== Section: Prabhat Samgiita ==

हे परमपुरुष! पहले मैं धूल में पड़ा हुआ था,
तुमने मुझे उठाकर गोद में बैठाया और साधना सिखाई।


प्रभात संगीत 1037 काछे एशे  दूरे सारे गेले केनो...

परिचय - इस गीत में भक्त सीधे ही प्रभु को शिकायत कर रहा है कि वे उससे दूर क्यों चले गये? पर इसका मतलब यह नहीं है कि परमपुरुष सचमुच में भक्त से किसी दूर के स्थान पर चले गये हैं। वरन् यह तो आमने सामने हो रही वार्ता है जिसमें भक्त अनुभव करता है कि परम पुरुष उसे और अधिक प्रेम नहीं करते हैं।  इसलिये यह तो एक प्रेम भरी लड़ाई है जिसमें प्रेम पूर्वक शिकायत की जा रही है कि अब तुम मुझे प्रेम क्यों नहीं करते। वे लोग जो आध्यात्म की  बारीकियों को  नहीं समझते या भक्ति की गहराई में नहीं पहुंचे हैं वे इसे नहीं समझ सकते। इस प्रकार के लोग  समझते हैं कि सचमुच बाबा कहीं चले गये हैं और वे इसे महाप्रयाण गीत के रूप में प्रस्तुत करते हैं।  परमपुरुष के साथ अपने मन  के भीतर की  प्यार भरी शिकायत करने की  स्वाभाविक बातचीत  कैसे होती  है वे नहीं जान पाते।

भावार्थ

हे परमपुरुष बाबा ! तुमने मेरे पास आने की कृपा की परंतु फिर तुम दूर क्यों चले गये? मैं , तुम्हारी इस अनदेखी  से घायल हो गया हॅूं। मैं  बड़ा ही दुखित हॅूं। तुम मेरे सामने खड़े थे और फिर छिपते चले गये। मैं सोचने लगा हूँ  कि क्या तुम्हें मेरे लिये थोड़ी सी भी ममता नहीं है ? पहले जब मैं साधना के रास्ते  पर नहीं चल रहा था और  धूल में पड़ा हुआ था, तब तुमने मुझे उठाकर गोद में बैठाया और साधना सिखाई। तुमने मुझे कृपापूर्वक प्रेम से आशीष दिया। तब तुम मेरे ध्यान साधना में रोज आया करते थे।  सब कुछ सरलता से आगे बढ़ रहा था।  पर अब,  तुम मेरी ध्यान साधना में नहीं आ रहे हो और  मेरा मन सूख गया है । इस आध्यात्मिक साधना के  पथ पर चलने में, मैं अनेक कठिनाइयों का सामना कर रहा हॅूं और तुम चुपचाप देख रहे हो ? तुम दूर चले गये , मेरे लिये क्या तुम्हारे मन में अब कोई ममता नहीं है?

मैं धूल में पड़ा था, तब तुमने मुझे उठाकर गोद में उठाया और साधना सिखाई।

यह मुझे असहनीय लगता है कि तुम मेरे इतने निकट थे और अब तुम ने मुझे छोड़ दिया। क्या तुम्हें मेरे लिये पहले जैसा प्रेम नहीं है। तुम्हारी यह दया-हीनता मेरे सभी अंगों  को कष्ट दे रही है।हे दिव्य सत्ता! तुमने मुझे सीढ़ी से  पेड़ के शिखर पर चढ़ाया, बाद में  मेरे पैरों के नीचे से सीढ़ी को क्यों हटा लिया? तुमने मुझे माया से जीतने के लिये  और भक्ति को तेज  करने कि लिये अनेक विधियाॅं सिखाईं हैं पर वे कोई सहायता नहीं कर पा रहीं हैं। मैं साधना में अपने मन को ही केन्द्रित नहीं कर पा रहा हॅूं।  तुमने अमरता  का फल मेरी हथेली पर रखकर बाद में उस फल को नदी के बहते जल  में क्यों फेक दिया? तुमने मुझे सिखाया है  कि आध्यात्म ही मानव जीवन का मूल आधार है।  मेरा मन भी तुमने उसी ओर ढाल दिया था।  पर अब तो सब कुछ उलट गया  है, मैं तो भौतिकता में डूब गया हॅूं।  तुमने मुझे आध्यात्म का  मधुर स्पर्श जो पहले कभी  दिया  था,  अब क्यों छीन लिया  है? क्या यह वैसा ही नहीं है कि तुमने बसंत ऋतु  में तो फूल की कलियाॅं खिलाई, और फिर गर्मी की ऋतु में  गरम हवा से  उन्हें जला दिया?

तुमने मेरे पास आने की कृपा की, पर बाद में मेरी ध्यान साधना से क्यों दूर हो गये? मुझे तुम्हारी इस दया- हीनता से बहुत दुःख  पहॅुंचा है।

बाबा, हे  परमपुरुष! तुमने मेरा कपूर का जलता हुआ दीपक बुझा दिया है।  उसके काजल का चिन्ह अभी भी शेष है।  तुमने मेरे  मन की मधुरता छीन कर दुखी कर दिया  है। वह मरे हुए आदमी  की तरह हो चुका है । भक्ति के बिना मेरे  जीवन में अब कोई रस नहीं है। हे बाबा! हर समय तुम्हारी  कृपा पाने की याचना कर रहा हूँ , जिससे  मैं तुम्हारे भाव में मिल सकॅूं ।

बाबा! यह सोचकर बड़ा दुख होता है कि पहले तुम कितने पास थे पर अब नहीं। क्या अब तुम्हें मेरे लिये थोड़ा सा भी प्रेम नहीं है? ओह! तुम्हारी कठोरता  मुझे कितना कष्ट दे रही है। (1)

टिप्पणी
 ममताः-  अर्थात् किसी को अपने बराबर या अपने से अधिक प्रेम करना। माॅं अपनी संतान को अपने से भी अधिक चाहती है।
       ममता = मम + ता । मम का अर्थ है मेरा, और ममता का अर्थ हुआ अपनापन या, मेरा ही। जैसे , यदि आप अस्वस्थ हैं तो आप केवल अपने तक ही चिंतित रहेंगे और दवा आदि लेने के लिये डाक्टर के पास जायेंगे, परंतु यदि आपकी ममता किसी मित्र या रिश्तेदार  के प्रति है तो उसके अस्वस्थ होने पर आप उसके प्रति उतने ही चिंतित रहेंगे। साधना करने से मन की परिधि बढ़ने लगती है और धीरे धीरे उसका इतना विस्तार हो जाता है कि अपने ही नहीं पराये भी अपनी ममता की सीमा के भीतर आ जाते हैं । साधना के उच्च स्तर पर पूरा ब्रह्माॅंड ही ममता में भर जाता है। परमपुरुष की ममता प्रत्येक अस्तित्व के साथ है, पूरी सृष्टि के साथ होती है।

Reference
1. Trans: Dr. T.R.S.

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== Section: Important Teaching==

Revolution: Role of Sentiments, AMPS, Hitler

Prout philosophy states, “Revolution always takes place around a sentiment. If there is no strong common sentiment, a revolution cannot take place. Sentiment is always stronger than logic.”

“Communism propagates sentiments like workers of the world unite. Initially, people were attracted to such sentiments, but after some time they discovered that they were hollow, consequently intellectuals became dissatisfied with them. Communism is now unable to fight against the local sentiments that are coming up in different parts of the world because these sentiments are stronger than communist sentiments.”

“PROUT is based on a universal sentiment which is applicable for the whole cosmological order, and it is systematically moving towards the implementation of this sentiment. Who will make the local people conscious of their local sentiments keeping universalism in mind? Only PROUT can do this. Communists have no such idea. Only PROUT can tackle all local sentiments and lead everyone in the world to universalism by gradual stages.”

Prout philosophy states, “Revolutionaries must be well-versed in arousing the sentiments of the people and channelizing the sentimental legacy of the society towards universalism. During the preparation for revolution, unstinting effort must go into arousing the sentimental legacy of the people, because sentiments inspire popular support for the cause of revolution, and infuse the revolutionary workers with tremendous power and conviction.”

“According to PROUT, there are two types of sentiments – positive sentiments and negative sentiments. Positive sentiments are synthetic in nature. They unite society and elevate humanity, enhance collective interests and encourage progressive development. Negative sentiments are narrow in scope and divide society.”

Prout philosophy states, “Some important positive sentiments include anti-exploitation sentiment, revolutionary sentiment, moral sentiment, cultural sentiment, universal sentiment and spiritual sentiment. Some negative sentiments include communalism, patriotism, nationalism, provincialism, lingualism and racism.”

“Negative sentiments should never be used to divide people into castes and communities – to create artificial fissiparous tendencies in society. Rather, they should always be used to bring unity amongst people. Hitler used racism in an effort to unite the German people and he succeeded in the short-term, but because he used negative sentiments only and had no positive sentiments, his approach resulted in a world war and the near destruction of Germany. The path of negativity is extremely dangerous and harmful for society. Positive sentiments are the real weapons to build society. This must never be forgotten under any circumstances.” (1)

Reference
1. Prout in a Nutshell - 21, Negative sentiments should never


== Section 3: Links ==

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