Baba
This email contains 5 sections:
1. Real spiritual aspirants can maintain their restraint - Ananda Vanii
2. End Quote: How one can become Parama Purusa
This email contains 5 sections:
1. Real spiritual aspirants can maintain their restraint - Ananda Vanii
2. End Quote: How one can become Parama Purusa
3. অন্য দেশে উদ্বাস্তু হিসেৰে চলে আসে | কেন আসে?
4. PS #4091: हे बाबा! मैं तुमको कितने लंबे समय तक भूला रहा।
5. Links
"Those who can maintain their restraint in spite of intense provocation are the real spiritual aspirants. They alone have overcome anger. Inspire those who are liars and criminals to live honest lives by pointing out their defects. This is the only spiritual approach to punish wrongdoers. Supreme truth is ever resplendent and can never be tarnished by false propaganda."
Note 1: The above is one of Baba’s original Ananda Vaniis. These original and true Ananda Vaniis are unique, eternal guidelines that stand as complete discourses in and of themselves. They are unlike Fake Ananda Vaniis.
4. PS #4091: हे बाबा! मैं तुमको कितने लंबे समय तक भूला रहा।
5. Links
Real spiritual aspirants can
maintain their restraint
in spite of intense provocation - Ananda Vanii #8
in spite of intense provocation - Ananda Vanii #8
"Those who can maintain their restraint in spite of intense provocation are the real spiritual aspirants. They alone have overcome anger. Inspire those who are liars and criminals to live honest lives by pointing out their defects. This is the only spiritual approach to punish wrongdoers. Supreme truth is ever resplendent and can never be tarnished by false propaganda."
Note 1: The above is one of Baba’s original Ananda Vaniis. These original and true Ananda Vaniis are unique, eternal guidelines that stand as complete discourses in and of themselves. They are unlike Fake Ananda Vaniis.
== Section 2
==
The section below demarcated by
asterisks is an entirely different topic,
completely unrelated to the above material. It stands on its own as a point of interest.
completely unrelated to the above material. It stands on its own as a point of interest.
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How one can become Parama Purusa
== Section 5 ==
Links
Do you know these myths in Ananda Marga
Find out when pen name is used
Why AM service projects start and become defunct
How one can become Parama Purusa
Sadguru Baba says, “When the
pleasure-seeking unit mind blindly runs after unit-objects,
Puruśa also gets smitten by the same mental attributes. He
appears to be as if in bondage. But when the unit mind shuns
its attraction for mundane objects and accepts that Supreme
Puruśa as its only pabulum, it gets an opportunity to become
one with the Cosmic Mind, giving up its finitude. With the
attainment of the witness-ship of the Integral Mind it becomes
one with the Puruśottama. In the absence of bondage of
enjoyership (Bhoktábhava) the unit mind attains emancipation
from all kinds of fetters.” (1)
Note: This is the essence of human life. When one is no longer allured by worldly attractions and sincerely directs the mind towards Parama Purusa, then one can become one with Him. This is the aim of sadhana and the path of yoga - realising Him. He is within but people are not aware. When, through sadhana, this ignorance is removed, then one truly feels they are Parama Purusa. And that is realisation, i.e. the feeling in the heart and mind that, "I am Brahma." At first one must impose this idea in their sadhana, but as one involves more deeply in their meditation then by His grace that feeling develops from within. Then sadhana is very blissful and one has advanced along the path of spirituality, by His grace.
Reference:
1. Ananda Marga Ideology and Way of Life - 6, The Primordial Cause of Creation
Note: This is the essence of human life. When one is no longer allured by worldly attractions and sincerely directs the mind towards Parama Purusa, then one can become one with Him. This is the aim of sadhana and the path of yoga - realising Him. He is within but people are not aware. When, through sadhana, this ignorance is removed, then one truly feels they are Parama Purusa. And that is realisation, i.e. the feeling in the heart and mind that, "I am Brahma." At first one must impose this idea in their sadhana, but as one involves more deeply in their meditation then by His grace that feeling develops from within. Then sadhana is very blissful and one has advanced along the path of spirituality, by His grace.
Reference:
1. Ananda Marga Ideology and Way of Life - 6, The Primordial Cause of Creation
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== Section 3 ==
অন্য দেশে উদ্বাস্তু হিসেৰে চলে আসে | কেন আসে?
“হ্যাঁ, মানুষ মানে “মন-প্রধান জীব” | মন-প্রধান জীব মানুষকে ৰলা হয় কেন ? না, মানুষের কাছে খাওয়া-পরা বা শারীরিক স্বাচ্ছন্দ্যটাই চরম পরম নয় | কেউ তোমাকে খুৰ ভাল-মন্দ খেতে দিলে, খুৰ খাওয়ার দাওয়ার ব্যাপারে খুৰ যত্ন করল, কিন্তু তোমাকে খোঁটা দিয়ে-দিয়ে কথা ৰলছে | তোমারে অন্তরে ঘা দিয়েছে, কথা ৰলছে | তুমি তার কাছে ভাল-মন্দ খেতে যাৰে না | এই হচ্ছে মানুষের স্বভাব | তা কেন মানুষের এইটা স্বভাব ? কেন মানুষ এ রকম করে ? না, সে মন-প্রধান |”
“দেখো কোনও একটা দেশ মনে করো | সে দেশে থেকে কোনও একজন মানুষ, হয়তো খুৰ ভাল ভাবেই ৰাঁচতে পারত, যদি সে তার ধর্মটুকু পরিবর্ত্তন করে দিত | কিন্তু মানুষ ধর্মটা পরিবর্ত্তন না করে, সে শত-সহস্র লাঞ্চনা অপমান সহ্য করেও, অন্য দেশে উদ্বাস্তু হিসেৰে চলে আসে | কেন আসে ? সে যে খাওয়ার পরৰার অভাবে এসেছে, তা নয় | তার মন, সেই পরিস্থিতিতে মানিয়ে নিতে পারেনি ৰলে, সে চলে এসেছে | এটা করেছে সে, যে হেতু, সে মন-প্রধান জীব |” (1)
Reference
1. অপ্রকাশিত, 1981 Kolkata
हे बाबा! मैं तुमको कितने लंबे समय तक भूला रहा।
प्रभात संगीत 4091 आमि तोमारे भुलिया छिनु कतो दिन....
भावार्थ
हे परमपुरुष! हे बाबा! मैं तुमको विस्मृत कर कितने लंबे समय तक भूला रहा। मेरा जीवन इसी तरह गुजरा, मैं ऊबड़खाबड़ टेड़ेमेड़े रास्तों में चलता रहा, कभी गिरा, कभी महासागर की धारा में डूबा। तुम सुनहले कमल की तरह अज्ञात ही बने रहे। मेरे दिन निराशा में व्यर्थ हुए, कोई उपलब्धि नहीं, कोई सार्थक आध्यात्मिक प्रगति नहीं।
हे परम सत्ता! तुम्हारी चाह में अनेक रातें प्राणहीन निरी विषमता औरनिराशा में रोते रोते बीतीं। बाबा! कभी कभी मुझे तुम्हारी याद में उत्तरी ठंडी हवाओं की चोट ने कष्ट दिया। और साधना के प्रति मेरी उदासीनता ने मेरा मन सूखा बनादिया और उसने मेरी सब आशाअों , उत्साह और तुम्हारी भक्ति, सब को छीन लिया। मैं जड़ता के अंधकार में डूब गया। मैं तुमको कितने लंबे समय तक भूला रहा।
हे मेरे प्रभु! अब तुम्हारी कृपा से बसंत आ गयी है, सभी सीमायें रंगीन फूलों और मधुर सुगंध से भर गईं हैं। आकाश की काली रात, चमकती चाॅंदनी में बदल कर सब ओर फैल रही है। मोर अपने पंख फैलाकर आनन्द में नाच करअपनी खुशी प्रदर्शित कर रहे हैं। मैं तुमको कितने लंबे समय तक भूला रहा।
हे दिव्य सत्ता, हे बाबा! तुम्हारी कृपा से मधुर वयारि आ गई है और दिव्य स्पंदनों से मेरे पूरे अस्तित्व को झंकृत कर, मुझे कंपित कर रही है। वह मधुर बयारि मुझे संकेत दे रही है और
कह रही है ‘‘ कि सुनो, तुम्हें, अनुनादित करने वाली दिव्य वाॅंसुरी बुलारही है।‘‘ हे बाबा! मैं तुमको कितने लंबे समय तक भूला रहा।
- Trans: Dr. T.R.S.
Note: If you would like the audio file of the above Prabhat Samgiita kindly write us.
“হ্যাঁ, মানুষ মানে “মন-প্রধান জীব” | মন-প্রধান জীব মানুষকে ৰলা হয় কেন ? না, মানুষের কাছে খাওয়া-পরা বা শারীরিক স্বাচ্ছন্দ্যটাই চরম পরম নয় | কেউ তোমাকে খুৰ ভাল-মন্দ খেতে দিলে, খুৰ খাওয়ার দাওয়ার ব্যাপারে খুৰ যত্ন করল, কিন্তু তোমাকে খোঁটা দিয়ে-দিয়ে কথা ৰলছে | তোমারে অন্তরে ঘা দিয়েছে, কথা ৰলছে | তুমি তার কাছে ভাল-মন্দ খেতে যাৰে না | এই হচ্ছে মানুষের স্বভাব | তা কেন মানুষের এইটা স্বভাব ? কেন মানুষ এ রকম করে ? না, সে মন-প্রধান |”
“দেখো কোনও একটা দেশ মনে করো | সে দেশে থেকে কোনও একজন মানুষ, হয়তো খুৰ ভাল ভাবেই ৰাঁচতে পারত, যদি সে তার ধর্মটুকু পরিবর্ত্তন করে দিত | কিন্তু মানুষ ধর্মটা পরিবর্ত্তন না করে, সে শত-সহস্র লাঞ্চনা অপমান সহ্য করেও, অন্য দেশে উদ্বাস্তু হিসেৰে চলে আসে | কেন আসে ? সে যে খাওয়ার পরৰার অভাবে এসেছে, তা নয় | তার মন, সেই পরিস্থিতিতে মানিয়ে নিতে পারেনি ৰলে, সে চলে এসেছে | এটা করেছে সে, যে হেতু, সে মন-প্রধান জীব |” (1)
Reference
1. অপ্রকাশিত, 1981 Kolkata
== Section 4 ==
हे बाबा! मैं तुमको कितने लंबे समय तक भूला रहा।
प्रभात संगीत 4091 आमि तोमारे भुलिया छिनु कतो दिन....
भावार्थ
हे परमपुरुष! हे बाबा! मैं तुमको विस्मृत कर कितने लंबे समय तक भूला रहा। मेरा जीवन इसी तरह गुजरा, मैं ऊबड़खाबड़ टेड़ेमेड़े रास्तों में चलता रहा, कभी गिरा, कभी महासागर की धारा में डूबा। तुम सुनहले कमल की तरह अज्ञात ही बने रहे। मेरे दिन निराशा में व्यर्थ हुए, कोई उपलब्धि नहीं, कोई सार्थक आध्यात्मिक प्रगति नहीं।
हे परम सत्ता! तुम्हारी चाह में अनेक रातें प्राणहीन निरी विषमता औरनिराशा में रोते रोते बीतीं। बाबा! कभी कभी मुझे तुम्हारी याद में उत्तरी ठंडी हवाओं की चोट ने कष्ट दिया। और साधना के प्रति मेरी उदासीनता ने मेरा मन सूखा बनादिया और उसने मेरी सब आशाअों , उत्साह और तुम्हारी भक्ति, सब को छीन लिया। मैं जड़ता के अंधकार में डूब गया। मैं तुमको कितने लंबे समय तक भूला रहा।
हे मेरे प्रभु! अब तुम्हारी कृपा से बसंत आ गयी है, सभी सीमायें रंगीन फूलों और मधुर सुगंध से भर गईं हैं। आकाश की काली रात, चमकती चाॅंदनी में बदल कर सब ओर फैल रही है। मोर अपने पंख फैलाकर आनन्द में नाच करअपनी खुशी प्रदर्शित कर रहे हैं। मैं तुमको कितने लंबे समय तक भूला रहा।
हे दिव्य सत्ता, हे बाबा! तुम्हारी कृपा से मधुर वयारि आ गई है और दिव्य स्पंदनों से मेरे पूरे अस्तित्व को झंकृत कर, मुझे कंपित कर रही है। वह मधुर बयारि मुझे संकेत दे रही है और
कह रही है ‘‘ कि सुनो, तुम्हें, अनुनादित करने वाली दिव्य वाॅंसुरी बुलारही है।‘‘ हे बाबा! मैं तुमको कितने लंबे समय तक भूला रहा।
- Trans: Dr. T.R.S.
Note: If you would like the audio file of the above Prabhat Samgiita kindly write us.
== Section 5 ==
Links
Do you know these myths in Ananda Marga
Find out when pen name is used
Why AM service projects start and become defunct