बाबा
This email contains four sections:
1. Posting: पुरोधा प्रमुख दादा की अज्ञानता
2. Ananda Vanii: Pauseless struggle
3. Important Teaching: How majority are fools
4. Link
पुरोधा प्रमुख दादा की अज्ञानता
Note: This is a Hindi posting, but those who prefer to read the English version posting on this topic, see this link:
Also: Those who do not know Hindi, please scroll lower down and you will find some interesting things to read in English.
नमस्कार,
प्रज्ञा
भारती पत्रिका (प्रति संख्या २५०) के १५वे पृष्ठ पर पुरोधा प्रमुख आचार्य
विश्वदेवानन्द जी द्वारा लिखित एक अत्यन्त ही आपत्तिजनक लेख की प्रस्तुति
की गई है | इस लेख का शीर्षक है “कल्पतरु" | इस लेख में PP दादा ने
आनन्दमार्ग की शिक्षाओं के बजाय हिन्दू सम्प्रदाय में प्रचलित
भावजड़तापूर्ण गलत शिक्षाओं का प्रचार किया है | विशेष रूप से PP दादा ने
श्रीमद्भगवद्गीता के एक ऐसे श्लोक की व्याख्या प्रस्तुत की है जिसका पूज्य
बाबा ने कभी अपने किसी भी प्रवचन में उपयोग नहीं किया | पूज्य बाबा के
प्रवचनों में इस श्लोक का न होना इस बात का स्पष्ट सूचक है कि इस श्लोक का
आनन्दमार्ग की शिक्षाओं में कोई स्थान नहीं | इसके बावजूद आचार्य
विश्वदेवानन्द जी ने न केवल इस श्लोक का अपने लेख में उपयोग किया बल्कि
इसके माध्यम से भावजड़तापूर्ण गलत शिक्षाओं का प्रचार भी किया है |
PP
दादा के लेख (प्रज्ञा भारती, प्रति संख्या २५५, मई-जून २०१६, २०वां पृष्ठ)
का स्कैन चित्र नीचे दर्शाया गया है | ध्यान से देखिए इस स्कैन चित्र को
जिस में हिन्दू सम्प्रदाय में प्रचलित एक काल्पनिक क़िस्से को आनन्दमार्ग
की शिक्षा के रूप में प्रस्तुत किया है PP दादा ने |
ऊपर
दिखाया गया स्कैन चित्र आचार्य विश्वदेवानन्द जी द्वारा लिखा गया प्रज्ञा
भारती पत्रिका (प्रति संख्या २५०) के १५वे पृष्ठ में छपे लेख का है | इस
लेख में PP दादा ने हिन्दू सम्प्रदाय में प्रचलित एक काल्पनिक क़िस्से को
आनन्दमार्ग की शिक्षा के रूप में प्रस्तुत किया है |
पी.पी. का हिन्दू डोग्मा के समक्ष आत्मसमर्पण
डोग्मा: सृष्टि लम्बवत् (vertical) - अधोमुखी (उलटे) पीपल वृक्ष से तुलना
पुरोधा प्रमुख आचार्य विश्वदेवानन्द जी (PP दादा) के अनुसार सृष्टि एक अधोमुखी (उलटे) पीपल वृक्ष की
भाँति है जिसका मूल ऊपर एवं तने और पत्तियाँ नीचे है | इस सृष्टि वृक्ष को
कल्पतरु की संज्ञा दी गई है | इस कल्पतरु के मूल (जड़) की तुलना ब्रह्म से
की गई है जो क्रमशः पञ्चभूत में रूपान्तरित होते (बदलते) है और जिनसे
जीव-जगत् का उद्भव (विकास) होता है | जीव-जगत् के उद्भव के क्रम में
मनुष्य का सृजन, इस प्रक्रिया का चरम बिन्दु होता है | इस कल्पतरु के
पत्तों की तुलना ब्रह्म-ज्ञान से की गई है |
उपरोक्त
व्याख्या में PP दादा ने सृष्टि के विकास के क्रम की तुलना एक
लम्बवत् (vertical) वृक्ष, जिसकी जड़ें, शाखाएँ, और पत्ते एक सीधी
रेखा में होते है, से की है | पुरोधा प्रमुख के क़िस्से के अनुसार निर्गुण
ब्रह्म इस लम्बवत् (vertical) वृक्ष के मूल हैं और प्रकृति के गुणों के
प्रभाव में आकर सगुण ब्रह्म में और तत्पश्चात पञ्चभूत में रूपान्तरित होते
है | इसके उपरान्त विकास के क्रम में जीव-जगत् और मनुष्य का उद्भव होता
है | किन्तु इस लम्बवत् (vertical) व्यवस्था में मनुष्य को ब्रह्म (वृक्ष
के मूल) तक पहुँचने के लिए विपरीत दिशा में अर्थात् छोटे जीव रूप और
पञ्चभूत के रास्ते से होकर जाना होगा | यह एक काल्पनिक और गलत व्याख्या है |
निम्नाङ्कित
चित्र में हिन्दू सम्प्रदाय के काल्पनिक क़िस्से को, जिसे PP दादा
आनन्दमार्ग की शिक्षा के रूप में प्रस्तुत कर रहे है, दर्शाया गया है | इस
काल्पनिक क़िस्से के अनुसार सृष्टि एक अधोमुखी वृक्ष के समान है |
ऊपर
दिखाए गए चित्र में सृष्टि की तुलना एक अधोमुखी वृक्ष से की गई है | इस
वृक्ष की जड़ें ऊपर की ओर हैं | इस चित्र के माध्यम से हिन्दू सम्प्रदाय की
मान्यता को दर्शाया गया है | जैसे ब्रह्म से जीव-जगत् और मनुष्य का विकास
होता है वैसे ही इस वृक्ष में जड़ों से तना और शाखाएँ उत्पन्न होती है |
हिन्दू सम्प्रदाय की मान्यता के अनुसार सृष्टि की व्यवस्था वृक्ष की तरह
लम्बवत् (vertical) है |
सृष्टि
का यह वृक्ष की तरह लम्बवत् चित्र आनन्दमार्ग दर्शन के प्रतिकूल है |
सृष्टि का लम्बवत् (vertical) होना एक सरासर गलत चित्र है जिसे आचार्य
विश्वदेवानन्द जी आनन्दमार्ग की शिक्षा के रूप में प्रस्तुत कर रहे है |
आनन्दमार्ग दर्शन: सृष्टि अण्डाकार, लम्बवत् नहीं
सृष्टि
को आनन्दमार्ग में सृष्टि-चक्र भी कहा गया है | इस चक्र के दो हिस्से होते
है - सञ्चर और प्रतिसञ्चर | सञ्चर में सूक्ष्म पुरुष प्रकृति के गुणों के
प्रभाव में आकर स्थूल पञ्चभूत में परिणत होते है | प्रतिसञ्चर में स्थूल
पञ्चभूत जीवन के माध्यम से पुनः सूक्ष्म ब्रह्म में विलीन हो जाता है |
प्रतिसञ्चर में जीवन के क्रम में छोटे जीवों से उन्नत जीवों का और अन्ततः
मनुष्य का उद्भव होता है | मनुष्य जीवन में साधना के द्वारा जीव पुनः
सूक्ष्म ब्रह्म को प्राप्त करता है |
आनन्दमार्ग
दर्शन के अनुसार - “Thus the entire creation has two phases. The first
phase is the process of the transformation of subtle into crude and the
second is that of crude into subtle.” (हिंदी अनुवाद : इसलिए सृष्टि के दो
चरण होते हैं | प्रथम चरण में सूक्ष्म स्थूल में रूपान्तरित होता है और
द्वितीय चरण में स्थूल सूक्ष्म में |) (१)
आनन्दमार्ग दर्शन के अनुसार सृष्टि लम्बवत् (vertical) न होकर चक्रवत् (circular) है (निम्नाङ्कित चित्र को देखें) |
ऊर्ध्व
(ऊपर दिया गया) अण्डाकार चित्र आनन्दमार्ग दर्शन के अनुकूल है | किन्तु
PP दादा ने आनन्दमार्ग दर्शन के विपरीत हिन्दू सम्प्रदाय के काल्पनिक
क़िस्से को प्रस्तुत किया है | ऐसा करके वे शायद अपने आपको एक ज्ञानी
कहलवाना चाहते है | किन्तु पूज्य बाबा की शिक्षाओं का प्रचार न कर एवं
हिन्दू सम्प्रदाय में प्रचलित काल्पनिक व झूठे क़िस्से को सुना कर वे
वास्तव में मूर्खता का ही तो परिचय दे रहे है |
पूज्य बाबा के चरण-कमल में,
भक्ति
विस्तृत जानकारी के लिए--
सृष्टि
की व्याख्या को आनन्दमार्ग के अनुकूल न करके हिन्दू सम्प्रदाय के क़िस्से
को सुनाना शायद आचार्य विश्वदेवानन्द जी की मात्र एक भूल नहीं है | यदि यह
एक भूल होती तो इसे वह बार-बार न दोहराते | प्रज्ञा भारती के पिछले अङ्क
में भी सृष्टि की पीपल वृक्ष से तुलना की गी है | इस वेबसाइट के माध्यम से
पहले भी इसी विषय में अंग्रेज़ी में एक पोस्टिंग की गी थी | इसके बावजूद
मई-जून २०१५ और फिर मई-जून २०१६ में पुनः प्रज्ञा भारती में इसी लेख को
छापा गया | निम्नाङ्कित स्कैन चित्रों में स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है
कि कैसे इस हिन्दू सम्प्रदाय के डॉगमा को आनन्दमार्ग के मुख्य मैगज़ीन में
पुनः-पुनः छापा जा रहा है |
प्रज्ञा भारती मई-जून २०१५, पृष्ठ १५.
नीचे देखिए
पुरोधा प्रमुख के चित्र को जिन्होंने हिन्दू सम्प्रदाय में प्रचलित एक
काल्पनिक क़िस्से को आनन्दमार्ग की शिक्षा के रूप में प्रस्तुत किया है |
ऊपर दिखाया गया चित्र PP दादा का है जो आनन्दमार्ग की शिक्षाओं के बजाय हिन्दू सम्प्रदाय मे प्रचलित क़िस्से का प्रचार करते हैं |
नोट: आचार्य विश्वदेवानन्द के नाम के अलग-अलग रूप - PP Dada, PP, पुरोधा प्रमुख, Vishwadevananda, Vishvadevananda
== Section 2: Ananda Vanii ==
Pauseless struggle
“Struggle
is the essence of life. Yours should be a pauseless struggle against
corruption, hypocrisy and animality.” (Ananda Vanii #11)
Note
1: True Ananda Vaniis have a number whereas Fake Ananda Vaniis do not -
just as a fake car license plate has no number. By this way, you can
easily recognise a Fake Ananda Vanii.
== Section 3: Important Teaching ==
How majority are fools
Prout
philosophy says, “There are several forms of governmental structure,
and among them the democratic structure is highly appreciated [by some
persons]. Democracy is defined as “government of the people, by the
people and for the people.” But in fact it is the rule of the majority.
Hence democracy means “mobocracy” because the government in a democratic
structure is guided by mob psychology. The majority of the society are
fools; wise people are always in a minority. Thus, finally democracy is
nothing but “foolocracy”.” (2)
Note:
Given the present political climate around the world, democracy is the
best option. But democracy does have its shortcomings. Currently, the
chief criteria for voting is age. If one has reached a certain age then
that makes them eligible to vote. Yet we all know that age alone does
not certify that one is truly qualified one to vote in a mature and
meaningful manner. To cast a meaningful vote, socio-political awareness
is needed.
However,
nowadays this is a very delicate issue. People feel that all should be
allowed to vote - not just a select few. Because, since long, in the
name a selecto-electoral system, voting rights were only given to the
dominant group. For instance, in the US, only white males were allowed
to vote for nearly two centuries. Relatively recently, after an extended
battle, voting rights were granted to women, African-Americans, and
others etc. That is why today, if you
mention the benefits of the selecto-electoral system, people become
terrified. They think that only the ruling group will have voting rights
and all others will be subjected to unfair treatment. They feel they
just eradicated that misery and now you want to bring it back.
Yet
as society advances, people will realise the need to have a socially
& politically conscious electorate. One should have sufficient
knowledge of the various parties and what their platforms are. If such a
system is properly implemented, and really only socially &
politically conscious people can vote, then the world will be a
different place. There will be so many positive changes. In due course
it is going to happen. Unfortunately,
because of the shortcomings in present-day system, the majority of
voters are fools. Hence, democracy is nothing but foolocracy
== Section 4: Links ==
Recent postings
Other topics of interest
References.
1. What is this world, Elementary Philosophy
2. Discourses on Prout
~ Legal Notice ~
© 2016 Ananda Marga Universal. All rights reserved. Ananda Marga Universal content is the intellectual property of Ananda Marga News Bulletin or its third party content providers. Ananda Marga News Bulletin shall not be liable for any errors or delays in content, or for any actions taken in reliance thereon. Any copying, republication or redistribution, part or full, of Ananda Marga News Bulletin content, including by framing or similar means, is against the court of law and expressly prohibited without the prior written consent of Ananda Marga News Bulletin.