Baba
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1. Posting: बाबा कथा: रांची में बाबा का दर्शन: आध्यात्मिक तरंगों का भूचाल
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1. Posting: बाबा कथा: रांची में बाबा का दर्शन: आध्यात्मिक तरंगों का भूचाल
2. Hindi Quote: जाड़े की रात में भी, गङ्गा में उतना पानी वे रहेंगे
3. Bangla Quote: অন্যায়ের বিরুদ্ধে সংগ্রাম করতে-করতে নিজেকে সত্পথে রেখে এগিয়ে চলতে হৰে
3. Bangla Quote: অন্যায়ের বিরুদ্ধে সংগ্রাম করতে-করতে নিজেকে সত্পথে রেখে এগিয়ে চলতে হৰে
4. The complete seeds of welfare are embedded in Sixteen Points - Ananda Vanii
5. End Quote: Prout: mischief-mongers who create language disputes...
6. Links
नमस्कार,
एक दिन मैंने निश्चय किया कि मैं रांची जाकर बाबा का दर्शन करूँ। आरा में दर्शन के बाद बाबा का मैंने दर्शन नहीं किया था। वे उस समय वहीँ पर प्रवास कर रहे थे। मैं रांची गया। बाबा के अपने क्वार्टर से निकलने के समय उपस्थित दर्शनार्थीगण दो पंक्तियों में खड़े हो गये। सभी बाबा के बाहर आने कि प्रतीक्षा करने लगे। बाबा जिधर से आते, मैं उधर ही बायीं ओर की पंक्ति में दो-चार आदमियों के बाद खड़ा था। बाकी बहुत से लोग हमारे दाहिने ओर दोनों पंक्तियों में खड़े थे। बाबा अपने कमरे से निकले। उनके साथ अन्य कुछ लोग भी थे। संख्या मुझे ठीक – ठीक स्मरण नहीं, यही कुल पाञ्च – छह जन होंगे। बाबा जैसे ही अपने कमरे से निकले और उपस्थित लोगो कि उन पर नजर पड़ी – जैसे उन लोगो के शरीर और मन पर तरंगों का भूचाल आ गया। सभी बाबाऽ बाबाऽऽ कर रहे थे। कोई रो रहा था तो कोई जोर – जोर से बाबाऽ बाबाऽऽ कर रहा था। कोई-कोई विह्वल हो कर एकदम शान्त हो गए थे। मेरी समझ में जिनका जैसा संस्कार था, जैसा मानसिक विकास और शारीरिक संरचना भी, उन्हें उसी के अनुरूप बाबा के आध्यात्मिक तरंगों कि अनुभूति हो रही थी। और मैं? मैं भी बाबा को देखते ही तरंगायित हो रहा था। सारा शरीर पुलकित था। शरीर में रोमांच के जैसा हो रहा था। मुझे नहीं मालूम कि उन कथित रोमांचों का कैसे वर्णन करूँ? क्योंकि वे रोमांच भी नहीं थे। शब्द के अभाव में मैंने उन्हें रोमांच कह दिया। इच्छा कर रही थी कि ऐसे ही रोमांच आते रहें। बाबा धीरे-धीरे हमारी पंक्ति कि ओर बढ़ रहे थे और उसी वेग से तरंगों का प्रवाह भी साधकों पर बढ़ते जा रहा था। जैसे ही परम पुरुष बाबा श्री श्री आनन्दमूर्ति जी पंक्तियों के अंदर घुसे, साधको के मन आध्यात्मिक तरंगों में लहराने लगे। सभी अपनी-अपनी तरह कि अनुभूतियाँ पा रहे थे। और अपने बारे में क्या कहूँ? बाबा आये। मैं अपने मन में उनसे प्रार्थना करने लगा कि – “हे प्रभो! जरा मेरी ओर भी देखकर मुझे भी कृतार्थ करें|” लेकिन वे मेरी ओर देखे बिना छलिया कि भांति आगे बढ़ चले और उनके पीछे-पीछे बह चला मैं “बाबा हो बाबा” कहते और रोते। मैं बाबा हो बाबा कहते रो रहा था और उनके पीछे-पीछे खींचते चला जा रहा था। वहाँ के अनुशासन के अनुसार अपनी – अपनी जगह पर खड़ा हो कर स्थिर रहना था। लेकिन मैं वहाँ खड़ा रहने कि स्थिति में नहीं था। मुझे मालूम पड़ रहा था – साक्षात् अनुभव हो रहा था कि कोई अदृश्य शक्ति अपनी ओर मुझे बरबस खीचे चली जा रही है । मैं जानकर या जरा भी सोचकर उनके पीछे नहीं जा रहा था। बल्कि मैं तो “लोहे और चुम्बक” वाली स्थिति में था। वहाँ अपना कोई वश नहीं था। वह क्षण अविस्मरणीय था। मैं किसी तरह कि अतिरंजना के बिना कह रहा हूँ आप विश्वास करें। सच्ची बात यह है कि पूर्ण घटना को मैं लेखनी से नहीं बाँध सकता – वह असंभव कार्य है। यहाँ तो आत्मसंतोष के लिए इतना लिख रहा हूँ | ----प्रभु आगे बढ़ चले और उनके पीछे-पीछे मैं बह चला, “बाबा हो बाबा” बोलते-बोलते, रोते-रोते, रोते-रोते।
परम प्रभु, बाबा चरण में
देवकुमार
Shrii Bhakti jii presents this story:
We are very grateful to Shrii Bhakti for his immense contribution of putting the hardly legible material into a usable electronic format. Without his efforts it would not have been possible to publish this story. - Eds
5. End Quote: Prout: mischief-mongers who create language disputes...
6. Links
बाबा कथा: रांची में बाबा का
दर्शन: आध्यात्मिक तरंगों का भूचाल
बाबा,नमस्कार,
एक दिन मैंने निश्चय किया कि मैं रांची जाकर बाबा का दर्शन करूँ। आरा में दर्शन के बाद बाबा का मैंने दर्शन नहीं किया था। वे उस समय वहीँ पर प्रवास कर रहे थे। मैं रांची गया। बाबा के अपने क्वार्टर से निकलने के समय उपस्थित दर्शनार्थीगण दो पंक्तियों में खड़े हो गये। सभी बाबा के बाहर आने कि प्रतीक्षा करने लगे। बाबा जिधर से आते, मैं उधर ही बायीं ओर की पंक्ति में दो-चार आदमियों के बाद खड़ा था। बाकी बहुत से लोग हमारे दाहिने ओर दोनों पंक्तियों में खड़े थे। बाबा अपने कमरे से निकले। उनके साथ अन्य कुछ लोग भी थे। संख्या मुझे ठीक – ठीक स्मरण नहीं, यही कुल पाञ्च – छह जन होंगे। बाबा जैसे ही अपने कमरे से निकले और उपस्थित लोगो कि उन पर नजर पड़ी – जैसे उन लोगो के शरीर और मन पर तरंगों का भूचाल आ गया। सभी बाबाऽ बाबाऽऽ कर रहे थे। कोई रो रहा था तो कोई जोर – जोर से बाबाऽ बाबाऽऽ कर रहा था। कोई-कोई विह्वल हो कर एकदम शान्त हो गए थे। मेरी समझ में जिनका जैसा संस्कार था, जैसा मानसिक विकास और शारीरिक संरचना भी, उन्हें उसी के अनुरूप बाबा के आध्यात्मिक तरंगों कि अनुभूति हो रही थी। और मैं? मैं भी बाबा को देखते ही तरंगायित हो रहा था। सारा शरीर पुलकित था। शरीर में रोमांच के जैसा हो रहा था। मुझे नहीं मालूम कि उन कथित रोमांचों का कैसे वर्णन करूँ? क्योंकि वे रोमांच भी नहीं थे। शब्द के अभाव में मैंने उन्हें रोमांच कह दिया। इच्छा कर रही थी कि ऐसे ही रोमांच आते रहें। बाबा धीरे-धीरे हमारी पंक्ति कि ओर बढ़ रहे थे और उसी वेग से तरंगों का प्रवाह भी साधकों पर बढ़ते जा रहा था। जैसे ही परम पुरुष बाबा श्री श्री आनन्दमूर्ति जी पंक्तियों के अंदर घुसे, साधको के मन आध्यात्मिक तरंगों में लहराने लगे। सभी अपनी-अपनी तरह कि अनुभूतियाँ पा रहे थे। और अपने बारे में क्या कहूँ? बाबा आये। मैं अपने मन में उनसे प्रार्थना करने लगा कि – “हे प्रभो! जरा मेरी ओर भी देखकर मुझे भी कृतार्थ करें|” लेकिन वे मेरी ओर देखे बिना छलिया कि भांति आगे बढ़ चले और उनके पीछे-पीछे बह चला मैं “बाबा हो बाबा” कहते और रोते। मैं बाबा हो बाबा कहते रो रहा था और उनके पीछे-पीछे खींचते चला जा रहा था। वहाँ के अनुशासन के अनुसार अपनी – अपनी जगह पर खड़ा हो कर स्थिर रहना था। लेकिन मैं वहाँ खड़ा रहने कि स्थिति में नहीं था। मुझे मालूम पड़ रहा था – साक्षात् अनुभव हो रहा था कि कोई अदृश्य शक्ति अपनी ओर मुझे बरबस खीचे चली जा रही है । मैं जानकर या जरा भी सोचकर उनके पीछे नहीं जा रहा था। बल्कि मैं तो “लोहे और चुम्बक” वाली स्थिति में था। वहाँ अपना कोई वश नहीं था। वह क्षण अविस्मरणीय था। मैं किसी तरह कि अतिरंजना के बिना कह रहा हूँ आप विश्वास करें। सच्ची बात यह है कि पूर्ण घटना को मैं लेखनी से नहीं बाँध सकता – वह असंभव कार्य है। यहाँ तो आत्मसंतोष के लिए इतना लिख रहा हूँ | ----प्रभु आगे बढ़ चले और उनके पीछे-पीछे मैं बह चला, “बाबा हो बाबा” बोलते-बोलते, रोते-रोते, रोते-रोते।
परम प्रभु, बाबा चरण में
देवकुमार
Shrii Bhakti jii presents this story:
We are very grateful to Shrii Bhakti for his immense contribution of putting the hardly legible material into a usable electronic format. Without his efforts it would not have been possible to publish this story. - Eds
== Section 2 ==
जाड़े की रात में भी, गङ्गा में उतना पानी वे रहेंगे
"मनुष्य बहुत कुछ करते हैं प्रमाद के साथ, जहाँ किसी भी प्रकार की वृत्ति के द्वारा प्रेषित होते हैं, वहीं वे प्रमाद-ग्रस्त हो जाते हैं | जैसे, पुण्य का लोभ; परमात्मा को पाने का इच्छा नहीं, पुण्य का लोभ; उसके कारण क्या करेंगे ? जाड़े की रात में भी, गङ्गा में उतना पानी वे रहेंगे, स्नान करेंगे, सोचेंगे; इससे पुण्य होगा | तो, पुण्य के लोभ के कारण वे काम जो कर रहे हैं, वह प्रमाद है; उससे रोग हो जाएगा, कुछ तो | तो, समाज में मनुष्य बहुत काम करते हैं जो, वृत्ति के द्वारा प्रेषित होकर; वह सब काम प्रमाद-ग्रस्त है | आपातः लोभ के कारण मनुष्य वह सब काम करते हैं |"
[यह बाबा के कैसेट से सीधे लिखा गया, बाबा का यह असली प्रवचन, अमृतोपदेश है। आनन्द मार्ग हिन्दी पुस्तकों में छपे प्रवचन तो नक़ली प्रवचन हैं, असली नहीं] (1)
Reference
1. GD 26 May 1969 Ranchi
অন্যায়ের বিরুদ্ধে সংগ্রাম করতে-করতে নিজেকে সত্পথে রেখে এগিয়ে চলতে হৰে
“চলতে হৰে, এগিয়ে যেতেই হৰে | এবং অন্যায়ের বিরুদ্ধে সংগ্রাম করতে-করতে নিজেকে সত্পথে রেখে এগিয়ে চলতে হৰে, চলতে হৰেই | কিন্তু চলতে হৰে ৰুদ্ধি-সম্মত পন্থায়, ধর্ম-সম্মত পন্থায় | অধর্মের বিরুদ্ধে, সংগ্রামের মাধ্যমে | নিরীহকে রক্ষা করৰার ব্রতের মাধ্যমে এগিয়ে যেতে হৰে |”
Reference
1. Egiye Cala'i Ma'nus'er Dharma
“The very import of the history of human welfare is the history of struggle and strife. Even the sweet gospels of peace could not be preached in an environment of peace and composure. Devils did not allow the apostle of peace to work peacefully – that is why I say that peace is the outcome of fight. This endeavour at the well-being of the human race concerns everyone – it is yours, mine and ours. We may afford to ignore our rights, but we must not forget our responsibilities. Forgetting the responsibility implies the humiliation of the human race. In order to march ahead on the road of human welfare, we will have to strengthen ourselves in all the arena of life. The complete seeds of welfare in all the spheres – physical, mental, moral, social and spiritual – are embedded in the sixteen points. Hence be firm on the sixteen points.” (Ananda Vanii #45)
"The problem of language is affecting the human society like a chronic disease. Ignorance of the proper meaning of different languages has made the confusion worse. Language is a medium of expression. There are six stages in the process of expression. The seed of expression is called Parashakti and lies in the Muládhára Cakra (or basic plexus). In the Svádhisthána Cakra (or fluidal plexus), a person mentally visualises the expression. The mental vision of one's expression is called Pashyanti Shakti. In the Mańipura Cakra (or solar plexus) this mental vision is transformed into mental sound which is called Madhyamá Shakti. The person now wants to express that feeling. This endeavour to express the feeling is called Dyotamáná Shakti. It works between the navel area and the throat. In the vocal cord it transforms an idea into language. This is called Vaekharii Shakti. After Vaekharii it is transformed into actual spoken language and is termed Shrutigocará. Thus linguistic differences are manifest only in the sixth stage of expression. In the first five stages there is no distinction or variation in the expression. A great deal of inter-community conflict could be checked if linguists and the mischief-mongers who create language disputes knew this fundamental fact. In essence, it is ignorance that brings untold miseries to humanity. It is a great folly on the part of prakrti to create so many languages, but diversity is the law of nature." (1)
Reference
1. Talks on Prout
"मनुष्य बहुत कुछ करते हैं प्रमाद के साथ, जहाँ किसी भी प्रकार की वृत्ति के द्वारा प्रेषित होते हैं, वहीं वे प्रमाद-ग्रस्त हो जाते हैं | जैसे, पुण्य का लोभ; परमात्मा को पाने का इच्छा नहीं, पुण्य का लोभ; उसके कारण क्या करेंगे ? जाड़े की रात में भी, गङ्गा में उतना पानी वे रहेंगे, स्नान करेंगे, सोचेंगे; इससे पुण्य होगा | तो, पुण्य के लोभ के कारण वे काम जो कर रहे हैं, वह प्रमाद है; उससे रोग हो जाएगा, कुछ तो | तो, समाज में मनुष्य बहुत काम करते हैं जो, वृत्ति के द्वारा प्रेषित होकर; वह सब काम प्रमाद-ग्रस्त है | आपातः लोभ के कारण मनुष्य वह सब काम करते हैं |"
[यह बाबा के कैसेट से सीधे लिखा गया, बाबा का यह असली प्रवचन, अमृतोपदेश है। आनन्द मार्ग हिन्दी पुस्तकों में छपे प्रवचन तो नक़ली प्रवचन हैं, असली नहीं] (1)
Reference
1. GD 26 May 1969 Ranchi
== Section 3 ==
অন্যায়ের বিরুদ্ধে সংগ্রাম করতে-করতে নিজেকে সত্পথে রেখে এগিয়ে চলতে হৰে
“চলতে হৰে, এগিয়ে যেতেই হৰে | এবং অন্যায়ের বিরুদ্ধে সংগ্রাম করতে-করতে নিজেকে সত্পথে রেখে এগিয়ে চলতে হৰে, চলতে হৰেই | কিন্তু চলতে হৰে ৰুদ্ধি-সম্মত পন্থায়, ধর্ম-সম্মত পন্থায় | অধর্মের বিরুদ্ধে, সংগ্রামের মাধ্যমে | নিরীহকে রক্ষা করৰার ব্রতের মাধ্যমে এগিয়ে যেতে হৰে |”
Reference
1. Egiye Cala'i Ma'nus'er Dharma
== Section 4
==
The complete seeds of welfare are
embedded in Sixteen Points
“The very import of the history of human welfare is the history of struggle and strife. Even the sweet gospels of peace could not be preached in an environment of peace and composure. Devils did not allow the apostle of peace to work peacefully – that is why I say that peace is the outcome of fight. This endeavour at the well-being of the human race concerns everyone – it is yours, mine and ours. We may afford to ignore our rights, but we must not forget our responsibilities. Forgetting the responsibility implies the humiliation of the human race. In order to march ahead on the road of human welfare, we will have to strengthen ourselves in all the arena of life. The complete seeds of welfare in all the spheres – physical, mental, moral, social and spiritual – are embedded in the sixteen points. Hence be firm on the sixteen points.” (Ananda Vanii #45)
Note:
The above is one of Baba’s original Ananda Vaniis.
These original and true Ananda Vaniis are unique,
eternal guidelines that stand as complete discourses
in and of themselves. They are unlike Fake Ananda
Vaniis which are fabricated by most of the groups - H,
B etc.
== Section 5
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Prout: mischief-mongers who create language disputes must read this
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Prout: mischief-mongers who create language disputes must read this
"The problem of language is affecting the human society like a chronic disease. Ignorance of the proper meaning of different languages has made the confusion worse. Language is a medium of expression. There are six stages in the process of expression. The seed of expression is called Parashakti and lies in the Muládhára Cakra (or basic plexus). In the Svádhisthána Cakra (or fluidal plexus), a person mentally visualises the expression. The mental vision of one's expression is called Pashyanti Shakti. In the Mańipura Cakra (or solar plexus) this mental vision is transformed into mental sound which is called Madhyamá Shakti. The person now wants to express that feeling. This endeavour to express the feeling is called Dyotamáná Shakti. It works between the navel area and the throat. In the vocal cord it transforms an idea into language. This is called Vaekharii Shakti. After Vaekharii it is transformed into actual spoken language and is termed Shrutigocará. Thus linguistic differences are manifest only in the sixth stage of expression. In the first five stages there is no distinction or variation in the expression. A great deal of inter-community conflict could be checked if linguists and the mischief-mongers who create language disputes knew this fundamental fact. In essence, it is ignorance that brings untold miseries to humanity. It is a great folly on the part of prakrti to create so many languages, but diversity is the law of nature." (1)
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1. Talks on Prout
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== Section 6 ==
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