बाबा
भारतवर्ष के युवाओं में हीनमन्यता
नमस्कार
हीनमन्यता कई तरह से किसी व्यक्ति के दैनिक व्यवहार को प्रभावित करती है | भारतीय युवाओं में पश्चिम को लेकर हीनमन्यता आम बात है | विडंबना यह है कि अक्सर हीनमन्यता से पीड़ित लोगों को इसका अहसास नहीं होता है या वे इसे स्वीकार करना पसंद नहीं करते हैं । इसलिए, वे कभी भी इस दुर्बलता को दूर नहीं कर सकते हैं |
लेकिन हर भारतीय पश्चिमी संस्कृति के सामने घुटने नहीं टेकते और यूरोपीय शैलियों के प्रभाव में आकर अपनी स्थानीय आदतों और रीति-रिवाजों को नहीं छोड़ते हैं |
लेकिन हीनमन्यता से पीड़ित होना एक प्रमुख रुझान है | अपनी हीनमन्यता के कारण लोग अपना विवेक खो देते हैं और अपने विश्वसनीय दृष्टिकोण और प्राण धर्म को त्याग कर सस्ती, पश्चिमी छद्म-संस्कृति को अपना लेते हैं | भारत के साथ-साथ दुनिया भर में यही प्रचलन है | स्वयं बाबा ने अपने Prout प्रवचनों में इसकी विस्तृत चर्चा की है |
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दैनिक जीवन में हीनमन्यताएँ कैसे प्रकट होती हैं
सभी को इसे खुले मन से पढ़ना चाहिए | हालाँकि निम्नलिखित उदाहरण भारत से संबंधित हैं, फिर भी कोई यह नहीं कह सकता कि किसी भी देश या क्षेत्र की पूरी आबादी अच्छी या बुरी है | भारत के प्रत्येक निवासी में हीनमन्यता नहीं है, लेकिन अधिकांश शिक्षित लोग इससे पीड़ित हैं | यह उनके व्यवहार से स्पष्ट साबित होता है | वास्तव में, ये मुद्दे वैश्विक हैं और, किसी देश विशेष तक सीमित नहीं हैं, बल्कि अनेक देशों और समुदायों में व्याप्त हैं |
चरम पूंजीवाद और बड़े पैमाने पर उत्पादित छद्म-संस्कृति के इस युग में, लोगों और समुदायों को प्रभुत्वशाली, शोषणकारी, पूंजीवादी अर्थतंत्र द्वारा घेर कर निगल जाने से बचाने के लिए एक शक्तिशाली यन्त्र की आवश्यकता है | पहले से ही मूल आबादी और अल्पसंख्यकों को प्रभुत्वशाली वर्ग द्वारा हीन महसूस कराया गया है | भाषा, पहनावा, वित्त और धर्म आदि बिंदुओं पर उन्हें सिखाया गया है कि वे उतने अच्छे नहीं हैं |
1. पोशाक - ब्रिटिश शासन के समय से - यानी सैकड़ों वर्षों से - भारतीय अपनी पारंपरिक पोशाक के प्रति बहुत ज्यादा संकोची हो गए हैं | हर अवसर पर वे अपने पारंपरिक पहनावे को त्यागकर यूरोपीय ड्रेस को अपनाते हैं | भारतीय पुरुषों ने बहुत पहले ही लंगोटा का उपयोग करना छोड़ दिया था; साथ ही उन्होंने पश्चिमी शैली के सूट आदि को अपनाया | इसके साथ ही, भारतीय महिलाओं ने अपनी पारंपरिक पोशाक, जहाँ उनका शरीर आराम से ढका रहता था, को छोड़कर पश्चिमी, अर्ध नग्न पोशाक को अपनाया है | यह इस हद तक बढ़ गया है कि अब वे पश्चिमी छद्म-संस्कृति के सभी उत्तेजक कपड़े पहनते हैं जैसे लो-कट टॉप आदि |
जब लोग अपने स्कूल या काम के ड्रेस कोड से बंधे नहीं होते हैं, और उनके पास जो चाहें पहनने का विकल्प होता है, तब वे अनजाने में प्रभुत्वशाली पश्चिमी पूंजीपतियों के कपड़े पहनकर अपना अलबेला फैशन व्यक्त करते हैं | यह सब हीनमन्यता के कारण होता है, जहाँ वे शासक अभिजात वर्ग के ढ़ग और आदतों को अपनाते हैं | कुछ लोग यह दावा कर सकते हैं कि वे केवल अपनी इच्छानुसार कार्य कर रहे हैं | लेकिन जब लोग गंभीर हीनमन्यता से पीड़ित हो जाते हैं तो उनकी विवेक की संपूर्ण शक्ति निष्क्रिय हो जाती है | दिमाग ठीक से सोच नहीं पाता | उस स्थिति में वे वास्तविक और उपयोगी आदतों को आँख बंद करके छोड़ देते हैं और शोषकों द्वारा प्रचारित अपमानजनक आदतों को उत्सुकता से स्वीकार कर लेते हैं |
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अपनी ही धार्मिक परंपराओं से शर्मिंदा हैं
2. हाथ मिलाना - पूरे भारत में हाथ मिलाना आधुनिकता और सफलता का प्रतीक बन गया है | लोग अब एक-दूसरे को देखकर नमस्कार मुद्रा करना पसंद नहीं करते हैं | उन्हें लगता है कि यह पुराना और अप्रचलित तरीका है | वे ऐसा करते हुए नहीं दिखना चाहते हैं | इसके बजाय, वे हैंडशेक का उपयोग करना चाहते हैं | यह उनकी सांस्कृतिक हीनता की भावना का स्पष्ट संकेत है | वे नमस्कार करने के अपने सात्विक और विवेकसम्मत दृष्टिकोण को छोड़कर बिना सोचे-समझे प्रभुत्वशाली शक्तियों की प्रथा, यानी हाथ मिलाने को स्वीकार कर लेते हैं | भारत में इस तरह से रुझान रखने वाले लोग यह उचित ठहराएँगे कि यह उनकी अपनी पसंद है | लेकिन जब कोई हीनता की भावनाओं से ग्रसित हो जाते हैं, तो वे सावधानीपूर्वक सुविचारित निर्णय लेने की स्थिति में नहीं होते हैं |
3. भोजन - हालाँकि भारत में सात्विक/शाकाहारी भोजन की महान परंपरा है, फिर भी कई लोग पश्चिमी फास्ट फूड, स्नैक्स और अन्य अस्वास्थ्यकर विकल्पों की ओर भाग रहे हैं | हालांकि कुछ परंपराए गलत हैं और उन्हें त्याग देना चाहिए। तथापि शाकाहारी भोजन बहुत उपयुक्त और फ़ायदेमंद होता है | शाकाहारी ख़ाने की ऐसी परंपरा को जारी रखना ही विवेकसम्मत होगा | लेकिन ऐसा नहीं हो रहा है | युवा पीढ़ी या तो पारंपरिक भारतीय व्यंजन तैयार करने की क्षमता खो बैठी है या उसने कभी यह सीखने की परवाह ही नहीं की कि पारंपरिक भारतीय व्यंजन कैसे तैयार किए जाते हैं | वे बस पश्चिमी भोजन के शौक में फँस गए | वे सोचते हैं कि चपाती बनाना उनकी दादी का काम है, और यह एक आधुनिक लड़की या लड़के के लिए उपयुक्त नहीं है | वे यह करते नज़र नहीं आना चाहते हैं | यह हीनमन्यता में डूबे रहने का परिणाम है, जिससे व्यक्ति की विभेद करने और निर्णय लेने की क्षमता बंद हो जाती है | तो यह एक और उदाहरण है कि कैसे प्रभुत्वशाली संस्कृति ने पराधीन जनता पर हीनमन्यता आरोपित करके अपने रीति-रिवाजों को थोप दिया है |
इनमें से अधिकांश मामलों में विडंबना यह है कि अक्सर पारंपरिक दृष्टिकोण बेहतर होता है, फिर भी लोग इसे छोड़ने के लिए तत्पर होते हैं क्योंकि वे नहीं चाहते कि उन पर पिछड़ा या मूर्ख का ठप्पा लगाया जाए | इसलिए वे प्रभुत्वशाली समूह के रीति-रिवाजों को आसानी से अपना लेते हैं ताकि अन्य लोग सोचे कि वे स्मार्ट, आधुनिक और समझदार हैं |
"मेरा रास्ता पर्याप्त अच्छा नहीं है"
4. सिनेमा -यह सर्वविदित है कि बाँलीवुड, हाँलीवुड की ही एक शाखा है | इन फिल्मों में पारंपरिक भारतीय/तांत्रिक मूल्यों को किनारे कर दिया गया है और छद्म-संस्कृति को प्रमुखता से दिखाया जाता है | यदि जनता में अपनी विरासत के प्रति सम्मान होता तो वे ऐसी फिल्में देखने के लिए इतने इच्छुक नहीं होते | इससे फिल्म निर्माताओं पर सात्विक और आध्यात्मिक विषयों और मूल्यों को दिखाने का दबाव पड़ता | इसके बजाय, अपनी तांत्रिक विरासत से शर्मिंदगी महसूस करते हुए, भारतीय फिल्म दर्शक पूरी तरह से उन सिल्वर-स्क्रीन सितारों पर मोहित हो जाते हैं जो छद्म-संस्कृति वाली हाँलीवुड कहानियों को चित्रित करते हैं | यहाँ भी कुछ लोग यह कह सकते हैं कि वे ऐसी फिल्मों का मजा लेते हैं | लेकिन जब लोग हीनमन्यता में फँस जाते हैं, तो वे सावधानीपूर्वक, तर्कसंगत निर्णय नहीं ले पाते हैं | वह क्षमता खो जाती है | और जब वे फिल्में समाज में आक्रोश का कारण बनती हैं, (ज़रा देखें कि इसने अमेरिका में विशेष रूप से युवाओं को कैसे प्रभावित किया है), तो इसे आपके सामाजिक जीवन में आमंत्रित करना सभी तर्कों को ख़ारिज कर दिया जाना है | फिर भी आजकल यही चलन है |
5. भाषा - भारत में कई शिक्षित लोग बाज़ार में अपनी मातृभाषा बोलने में लज्जा महसूस करते हैं | उन्हें लगता है कि अगर दूसरे लोग उन्हें इस तरह बोलते हुए सुनेंगे तो उन पर पिछड़ा इंसान का ठप्पा लग जाएगा | ये उनका डर है | इस अंतर्निहित हीनमन्यता के कारण, वे हिन्दी या अंग्रेज़ी आदि को अपनाएँगे | इसके विपरीत, जो लोग इस प्रकार की हीनमन्यता से पीड़ित नहीं हैं, वे निश्चित रूप से सार्वजनिक रूप से अपनी मातृभाषा बोलेंगे; उन्हें शर्म या लज्जा महसूस नहीं होगी |
6. मनोरंजन - पार्टी, कॉकटेल, स्पा आदि यूरोपीय मनोरंजन की पूरी श्रृंखला में भारतीय जनता मशगूल है | सभी पीढ़ियाँ, लेकिन विशेष रूप से युवा, पश्चिमी महसूस करना और दिखना चाहते हैं और वे इसके लिए पश्चिम में प्रसिद्ध छद्म-संस्कृति नाइटलाइफ़ का अनुकरण करते हैं | उन्हें लगता है कि उनकी अपनी परंपराएँ पुरातन, उबाऊ और एक दूसरे युग की हैं | इस तरह से भी उनकी सांस्कृतिक हीनमन्यता प्रकट होती है | हालांकि उनकी अपनी तांत्रिक परंपराएँ अधिक तर्कसंगत और विवेकसम्मत थीं, फिर भी उन्होंने आसानी से यूरोपीय चाल चलन अपनाने का विकल्प चुना क्योंकि वे हीनमन्यता से ग्रस्त थे जिसने उनकी मानसिक समझ को पूरी तरह से बर्बाद कर दिया था | यह एक दुर्भाग्यपूर्ण परिस्थिति है |
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छद्म-संस्कृति के लिए तंत्र की अदला-बदली
7. स्वच्छता - सदियों से ऋषियों ने भारतीय जनता को अच्छे स्वास्थ्य और स्वच्छता के अनगिनत रहस्य सिखाए | और लोगों को बहुत फ़ायदा हुआ | लेकिन अब वे उन पुरानी परंपराओं के बारे में जानना नहीं चाहते | इसके बजाय वे अमेरिकी तरीके अपनाना चाहते हैं | इसका एक स्पष्ट उदाहरण टॉयलेट पेपर का उपयोग है | अब भारतीय नागरिक ख़ुद को साफ करने के लिए पानी का उपयोग करने में रुचि नहीं रखते हैं | वे यह स्वीकार करने से भयभीत होते हैं कि वे केवल पानी का उपयोग करते हैं; यह उनकी हीनमन्यता का चरम है | वे गर्व से यह कहना पसंद करते हैं कि वे टॉयलेट पेपर का उपयोग करते हैं |
8. त्योहार समारोह - भारत में तांत्रिक परंपरा हमेशा आध्यात्मिकता (धर्म और / या धार्मिक अनुष्ठानों) पर आधारित रही है , न कि शराब आदि जैसे नशीले पदार्थों से प्रभावित | फिर भी अब भारत में नया साल एक भौतिकवादी नाच पार्टी जैसा दिखता है | अपने परिवार की सात्विक परंपराओं को छोड़कर इंटरनेट और फिल्मों में दिखाए गए पार्टियों जैसे आयोजनों का हिस्सा बनना एक बढ़ता हुआ रुझान है। उन्हें लगता है कि इस तरह से उन्हें "कूल" या " आधुनिक" के रूप में स्वीकार किया जाएगा | अपनी अंतर्निहित हीनमन्यता के कारण वे पश्चिमी और आधुनिक कहलाने की आशा में अनैतिकता की गहराई तक गिरने को तत्पर रहते हैं | ऐसी दुःखद परिस्थिति बनी हुई है।
9. धर्म - किसी भी अन्य देश की तुलना में, भारत अपनी ईश्वर पर आधारित जीवन शैली के लिए जाना जाता है | बाबा ने स्वयं बताया है कि भारत ही एकमात्र ऐसी भूमि है जिसका प्राण धर्म अध्यात्म है | सक्रिय रूप से इस मार्ग पर चलने के बजाय, बड़ी संख्या में भारतीय नागरिक ईसाई सम्प्रदाय की ओर रुख कर रहे हैं, उन बाहरी शोषकों का रिलीजन जो भारत पर कब्जा करने के लिए आए थे | अपनी हीनमन्यता से दबे हुए लोग ईसाई सम्प्रदाय को आधुनिक और सामाजिक रूप से सम्मानजनक मानकर इसमें शामिल हो रहे हैं।
10. धन - भारत इस धरती पर एकमात्र ऐसा देश है जिसने इस दुनिया को आध्यात्मिकता के दृष्टिकोण से देखा है | तंत्र में धन का अर्थ आध्यात्मिक धन है | ब्रिटिश आक्रमण और पश्चिमी तौर-तरीकों के संपर्क में आने के बाद से धन (पैसे) का आकर्षण धीरे-धीरे और लगातार बढ़ता गया और अब यह पूरी तरह से हावी हो चुका है | आज लोग डॉलर के लिए कुछ भी करने और मरने के लिए तैयारहैं और दुख़द रूप से आध्यात्मिक आदर्शों से उनका नाता टूट गया है | अब यह पैसा और भौतिकवाद ही बचा है | उन्हें लगता है कि इससे उन्हें वह प्रतिष्ठा और सम्मान मिलेगा जिसके वे हकदार हैं |
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निष्कर्ष
ये कुछ ऐसे उदाहरण हैं जो दर्शाते हैं कि कैसे हमारे भारत के भाई-बहन हीनमन्यता से ग्रस्त हैं | यह दुनिया भर में जो कुछ हो रहा है उसका एक सूक्ष्म रूप है | कई बार, पारंपरिक समुदाय अपनी विरासत की उपेक्षा करते हैं जो सच्चाई और अच्छाई से भरी होती है और आधुनिकता के सस्ते, छद्म-सांस्कृतिक मूल्यों को अपनाते हैं क्योंकि वे अपने अतीत से शर्मिंदा होते हैं और नई दुनिया से जुड़ना चाहते हैं | यह आजकल की दुख़द और दुर्भाग्यपूर्ण प्रवृत्ति है - और यह सब हीनता की भावनाओं को थोपने के कारण है |
नमस्कार.
उन्हीं के भाव में,
दिव्यज्योति शर्मा
कैसे वे शोषण के बीज बोते हैं
एक बार इस प्रकार की हीनमन्यता मन में स्थापित हो जाने पर, शासक वर्ग अपनी शोषणकारी मशीनरी के साथ तेज़ी से आगे बढ़ता है | अलग-अलग स्तर पर, दुनिया भर में असंख्य लोगों और समुदायों के साथ ऐसा हुआ है | स्थिति को सुधारने और शोषण के इस चक्र को समाप्त करने का एकमात्र तरीका उन लोगों और समुदायों को नई प्राण ऊर्जा और जीवन ऊर्जा प्रदान करना है | तब उनमें ख़ुद को इस हीनमन्यता से मुक्त करने और उन शोषकों के ख़िलाफ़ खड़े होने की ताकत और साहस आएगा | जब तक वे हीन महसूस करते रहेंगे तब तक वे शोषण के शिकार बने रहेंगे क्योंकि शासक समूह शोषित जनता द्वारा बहुत कम या कोई प्रतिरोध ना करने पर निर्दयतापूर्वक अपनी इच्छा थोपेगा |
जब तक भारतीय अँग्रेज़ों से हीन महसूस करते थे, और जब तक अफ्रीकी-अमेरिकी गुलाम श्वेत शासक वर्ग से हीन महसूस करते थे, तब तक अनवरत और अबाधित शोषण प्रचलित था | उनमें यह सोचने का आत्म-सम्मान या आँतरिक आत्मविश्वास नहीं था कि उन्हें इस तरह से अधीन या पीड़ित नहीं किया जाना चाहिए | बल्कि सत्ताधारी अभिजात वर्ग के लगातार प्रचार से उनका ब्रेनवॉश किया गया कि वे योग्य नहीं हैं | मन में भरी इस हीनमन्यता के कारण, उन्हें वास्तव में बेड़ियों में जकड़ दिया गया और निर्दयी शोषण का शिकार बना दिया गया | यह हीनमन्यता से पीड़ित होने का चरम ख़तरा है। शासक शोषक जानते हैं कि उनका अपना वर्चस्व जनता पर उस हीनमन्यता को थोपने पर निर्भर है | किसी भी शोषणकारी शासन/संबंध में यही संघर्ष होता है | दुनिया भर में इसके बहुत सारे उदाहरण हैं | फिर भी, जिस
क्षण उन शोषित आबादी को उनके अंतर्निहित मूल्य के बारे में जागरूक किया
जाएगा और कि वे भी परमपुरुष की धन्य संतान हैं और उन्हें इस धरती पर गरिमा और सम्मान के साथ जीने का अधिकार है, तब उस हीनमन्यता के काले बादल उड़ जायँगे, और समान स्थिति के लिए कठिन संघर्ष शुरू हो जाएगा | तब और तभी शोषण के वे दिन समाप्त होंगे |
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~ गहराई से अध्ययन ~
किस प्रकार प्रभुत्वशाली समूह (अंग्रेजों) ने अपनी इच्छा थोपी
Prout दर्शन में कहा गया है, (अँग्रेज़ी उपनिवेशवादी भारत के लोगों के प्राण धर्म को समझने में भी पर्याप्त चालाक थे, और उन्होंने उन्हें अपने प्राण धर्म को व्यक्त करने की स्वतंत्रता से वंचित कर दिया | अँग्रेज़, लोगों को गुलाम बनाने के लिए पूरे भारतीय समाज को अपनी औपनिवेशिक पकड़ में लाना चाहते थे | उन्होंने भारत की पुरानी शिक्षा प्रणाली में सुधार किया और अँग्रेज़ी शिक्षा प्रणाली को प्रचारित किया | अँग्रेज़ी शिक्षा प्रणाली भारत के विपरीत थी, क्योंकि यह एक वस्तुनिष्ठ दृष्टिकोण पर आधारित थी और व्यक्तिपरक दृष्टिकोण को पूरी तरह से नकार दिया गया था | ब्रिटिश औपनिवेशिक स्वामियों ने अपनी शिक्षा प्रणाली की तर्ज पर अधीनस्थ जाति को शिक्षत किया, और ऐसे लोगों का एक विशिष्ट समूह तैयार किया जो न तो भारतीय थे, न ही नागरिक और न ही सेवा योग्य | भारत के ये तथाकथित शिक्षित लोग अपनी आदतों, व्यवहार, विचारों, विनम्रता और अखंडता में भारतीयों के जनसमूह से पूरी तरह अलग थे | यही कारण है कि तथाकथित शिक्षित लोगों और भारत के ग्रामीण लोगों के बीच अंतर की खाई विकसित हुई | इन सूक्ष्म युक्तियों को लागू करके, भारत में लोगों का एक समूह दृष्टिकोण में भारतीय होने के बावजूद यूरोपीय दृष्टिकोण वाला बन गया, और इस समूह ने भारत में ब्रिटिश राज को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई | ) – ( हिन्दी का सांराशः) (1)
संदर्भ
1. Prout in a Nutshell, Talks on Education – Excerpt B
- Here is a link to the original English posting: India: Inferiority complex in youths