Baba
This email contains seven sections:
1. End Quote: Who is a real human being who is not
2. Comment: Re: Who does what in their later days of life
3. Comment: Re: What to do in these circumstances
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1. End Quote: Who is a real human being who is not
2. Comment: Re: Who does what in their later days of life
3. Comment: Re: What to do in these circumstances
4. Bangla Quote: উচিত হচ্ছে খোঁজা, যে কে অপরাধী: অপরাধীকে শায়েস্তা করে দেওয়া - How to bring unity
5. PS #2264: बाबा! तुम्हारी कहानियों और किस्सों को सोचते विचारते मेरे दिन निकल रहे है।
6. PS #2181: Neohumanistic devotional song
7. Links
Who is real a human being who is not
Baba says, "Those who have established themselves in their spiritual being through the practice of spiritual cult are the real human beings. Others, who do not move on the subtler and sublime path of spirituality, and behave like animals, are humans only in name. Human beings alone have the privilege to do sa'dhana'. Animals, because of their intellectual deficiencies, are unable to adhere to the spiritual cult..."
"Human beings, on the other hand, have the capacity to develop even in the spiritual realm. Those who do not pay heed to this special gift are animals, nay, even worse than animals. Animals are unable to make efforts for their spiritual development, whereas humans do have this ability." (1)
Note: Generally people think everyone with a human body as being human, but according to Baba's above teaching all are not human. In the above guideline Baba differentiates how and why.
Reference
1. Subhasita Samgraha - 24, Mysticism and Spirituality
উচিত হচ্ছে খোঁজা, যে কে অপরাধী: অপরাধীকে শায়েস্তা করে দেওয়া- How to bring unity
“যদু মধুকে ধরে, মারছে | এমন শুনে, মোহন এসে ৰলল, "আহা ! কেন মারামারি করছ ? কেন মারামারি করছ ? মিলেমিশে থাকৰে | মোহনের কথাটা ভারী মিষ্টি-মিষ্টি | কিন্তু এই মিষ্টি কথাতে কাজ চলৰে না | মোহনের উচিত হচ্ছে খোঁজা, যে যদুতে, মধুতে যে সংগ্রাম হচ্ছে, কে অপরাধী ? যদি দেখে, যদু অপরাধী, তাহলে তার সঙ্গে-সঙ্গে উচিত, মধুকে সমর্থন করে, যদুকে শায়েস্তা করে দেওয়া | এইটাই হ'ল তন্ত্রের পথ | তা নইলে, শুধু যে ৰলে "কেন মারামারি করছ” ৰলে, থামিয়ে দিলে, তার আগের দিন তো, ready হয়ে মধুকে যদু অনেক মেরে দিয়েছে | অনেক ঘুসি মেরেছে | আর মাঝখানে থেকে পড়ে---যদিও মধু মার খেল---আর মোহন এসে কেবল শান্তি বারি সিঞ্চন করে দিয়ে গেল | তাতে কোনও লাভ হয় না | আর যদুরে তাতে স্পর্ধা ৰেড়ে যাৰে |” (1)
Reference
1. Bha’rata, Tantra A’r Ta’ntrika, GD 1966, Kolkata
बाबा! तुम्हारी कहानियों और किस्सों को सोचते विचारते मेरे दिन निकल रहे है।
प्रभात संगीत 2264 तोमार कथाइ भाविते दिन चले जाय कतोना...
भावार्थ
हेे परमपुरुष बाबा! तुम्हारी कहानियों और किस्सों को सोचते विचारते मेरे दिन निकल रहे है। तुम्हारी कृपा से मेरा समय तुम्हारे कीर्तन, आसन ,साधना , स्वाध्याय और तुम्हारे चिंतन में ही बीतते हैं। पूरा दिन तुम्हारे ही चिन्तन में बीतता है, यह सोचते हुए कि तुम आओगे । कई युग बीत गये हैं , फिर भी जब मैं तुम्हारा ध्यान करने बैठता हॅू तो तुम मेरे हृदय में मधुरता से नहीं आते। इससे मैं सोचने लगता हॅूं कि मैंने साधना ही नहीं की , दिन बेकार ही चले गये, क्योंकि तुम नहीं आये। इसी कारण मैं सोचने लगता हॅूं कि मेरी साधना की गति उत्तम नहीं है, पराभक्ति नहीं है अन्यथा मेरे ध्यान में आकर तुम अवश्य ही मुझे आशीष देते।
हे बाबा! तुम्हारी कृपा से मैं अपने हृदय में यह अनुभव करता हॅूं कि तुम मुझे प्रेम करते हो और तुम्हारे लिए जो मुझमें कष्टदायी विरह है वह जानते हो। तुम्हारी दिव्य करुणा से मैं यह भी जानता हॅूं कि तुम हमेशा मेरे मन को अपने साथ रखते हो। बाबा! मैं यह भी जानता हॅूं कि तुम मेरे बारे में सोचते हो और मेरी भलाई चाहते हो। इस सब के बावजूद भी मैं तुम्हें पा नहीं सका । इसी कारण मेरे हृदय में आध्यात्मिक चुभन का दर्द बना हुआ है। यह तभी दूर होगा जब तुम मिलोगे, हे मेरे प्रभु! मैं उस शुभ दिन की प्रतीक्षा कर रहा हॅूं।
हे परमपुरुष बाबा!, कृपा कर मुझे अपनी पसंद और इच्छा के अनुसार मोड़ लीजिये, ताकि मैं तुम्हारे आदेशों का पालन करते हुए तुमको अच्छी तरह स्नेह से अनुभव कर सकॅूं। बाबा! मैं तुम्हें चाहता हॅूं और तुम मुझे चाहते हो इसलिये तुम वही करो जो तुम्हारी इच्छा है, मैं तो तुम्हारी इच्छा का अनुसरण करूंगा। अज्ञानता से कभी कभी मुझे लगता है कि सांसारिक मित्र मेरे सच्चे रक्षक हैं और मुझे आवश्यकता पड़ने पर परलोक तक साथ देंगे । हे प्रभु मेरी आॅंखें खोल दीजिये और यह अनुभव करा दीजिये कि इस संसार में तुम्हारे अलावा मेरा कोई नहीं है। बाबा! मुझे अपनी करुणामय कृपा वर्षा में डुबा दीजिये जिससे मैं अपने हृदय की गहराई में यह अनुभव करने लगॅूं कि केवल तुम ही मेरे अंतिम आश्रय हो।
टिप्पणी
तुमि चारणाई जगते केहाई:
इस पंक्ति में भक्त अनुभव करना चाहता है कि परमपुरुष के अलावा संसार में कोई अन्य आश्रय नहीं है। बाबा ने इसे इस प्रकार समझाया है-
‘‘ उसकी कृपा से वे ऊर्जा और शक्ति पायेंगे और उसी से आगे बढ़़ेंगे। उसकी कृपा के विना कोई भी एक कदम आगे नहीं बढ़ सकता है। इसलिये लोगों को यह हमेशा याद रखना चाहिये कि जो भी प्रगति वे करते हैं परमपुरुष की इच्छा से करते हैं। परमपुरुष का यह कर्तव्य है कि वे उन्हें आगे बढ़ाने में सहायता करें। परमपुरुष पर इस प्रकार की शतप्रतिशत निर्भरता शास्त्रों में ‘‘प्रपत्ति ‘‘ के नाम से जानी जाती है। साधकों को अपने मन में प्रपत्ति की भावना सदैव जाग्रत रखना चाहिये कि जो कुछ भी विश्व में घटित हो रहा है या जो कुछ भी सद्गुण उसे प्राप्त हुए हैं वे परमपुरुष की कृपा से ही हैं। वह सभी के प्रभु हैं, वे मशीन को चलाने वाले हैं और मैं मशीन हॅूं।
- Trans: Dr. T.R.S.
Note: If you would like a copy of the audio file of this PS let us know.
5. PS #2264: बाबा! तुम्हारी कहानियों और किस्सों को सोचते विचारते मेरे दिन निकल रहे है।
6. PS #2181: Neohumanistic devotional song
7. Links
Who is real a human being who is not
Baba says, "Those who have established themselves in their spiritual being through the practice of spiritual cult are the real human beings. Others, who do not move on the subtler and sublime path of spirituality, and behave like animals, are humans only in name. Human beings alone have the privilege to do sa'dhana'. Animals, because of their intellectual deficiencies, are unable to adhere to the spiritual cult..."
"Human beings, on the other hand, have the capacity to develop even in the spiritual realm. Those who do not pay heed to this special gift are animals, nay, even worse than animals. Animals are unable to make efforts for their spiritual development, whereas humans do have this ability." (1)
Note: Generally people think everyone with a human body as being human, but according to Baba's above teaching all are not human. In the above guideline Baba differentiates how and why.
Reference
1. Subhasita Samgraha - 24, Mysticism and Spirituality
== Section 2 ==
উচিত হচ্ছে খোঁজা, যে কে অপরাধী: অপরাধীকে শায়েস্তা করে দেওয়া- How to bring unity
“যদু মধুকে ধরে, মারছে | এমন শুনে, মোহন এসে ৰলল, "আহা ! কেন মারামারি করছ ? কেন মারামারি করছ ? মিলেমিশে থাকৰে | মোহনের কথাটা ভারী মিষ্টি-মিষ্টি | কিন্তু এই মিষ্টি কথাতে কাজ চলৰে না | মোহনের উচিত হচ্ছে খোঁজা, যে যদুতে, মধুতে যে সংগ্রাম হচ্ছে, কে অপরাধী ? যদি দেখে, যদু অপরাধী, তাহলে তার সঙ্গে-সঙ্গে উচিত, মধুকে সমর্থন করে, যদুকে শায়েস্তা করে দেওয়া | এইটাই হ'ল তন্ত্রের পথ | তা নইলে, শুধু যে ৰলে "কেন মারামারি করছ” ৰলে, থামিয়ে দিলে, তার আগের দিন তো, ready হয়ে মধুকে যদু অনেক মেরে দিয়েছে | অনেক ঘুসি মেরেছে | আর মাঝখানে থেকে পড়ে---যদিও মধু মার খেল---আর মোহন এসে কেবল শান্তি বারি সিঞ্চন করে দিয়ে গেল | তাতে কোনও লাভ হয় না | আর যদুরে তাতে স্পর্ধা ৰেড়ে যাৰে |” (1)
Reference
1. Bha’rata, Tantra A’r Ta’ntrika, GD 1966, Kolkata
== Section 3 ==
बाबा! तुम्हारी कहानियों और किस्सों को सोचते विचारते मेरे दिन निकल रहे है।
प्रभात संगीत 2264 तोमार कथाइ भाविते दिन चले जाय कतोना...
भावार्थ
हेे परमपुरुष बाबा! तुम्हारी कहानियों और किस्सों को सोचते विचारते मेरे दिन निकल रहे है। तुम्हारी कृपा से मेरा समय तुम्हारे कीर्तन, आसन ,साधना , स्वाध्याय और तुम्हारे चिंतन में ही बीतते हैं। पूरा दिन तुम्हारे ही चिन्तन में बीतता है, यह सोचते हुए कि तुम आओगे । कई युग बीत गये हैं , फिर भी जब मैं तुम्हारा ध्यान करने बैठता हॅू तो तुम मेरे हृदय में मधुरता से नहीं आते। इससे मैं सोचने लगता हॅूं कि मैंने साधना ही नहीं की , दिन बेकार ही चले गये, क्योंकि तुम नहीं आये। इसी कारण मैं सोचने लगता हॅूं कि मेरी साधना की गति उत्तम नहीं है, पराभक्ति नहीं है अन्यथा मेरे ध्यान में आकर तुम अवश्य ही मुझे आशीष देते।
हे बाबा! तुम्हारी कृपा से मैं अपने हृदय में यह अनुभव करता हॅूं कि तुम मुझे प्रेम करते हो और तुम्हारे लिए जो मुझमें कष्टदायी विरह है वह जानते हो। तुम्हारी दिव्य करुणा से मैं यह भी जानता हॅूं कि तुम हमेशा मेरे मन को अपने साथ रखते हो। बाबा! मैं यह भी जानता हॅूं कि तुम मेरे बारे में सोचते हो और मेरी भलाई चाहते हो। इस सब के बावजूद भी मैं तुम्हें पा नहीं सका । इसी कारण मेरे हृदय में आध्यात्मिक चुभन का दर्द बना हुआ है। यह तभी दूर होगा जब तुम मिलोगे, हे मेरे प्रभु! मैं उस शुभ दिन की प्रतीक्षा कर रहा हॅूं।
हे परमपुरुष बाबा!, कृपा कर मुझे अपनी पसंद और इच्छा के अनुसार मोड़ लीजिये, ताकि मैं तुम्हारे आदेशों का पालन करते हुए तुमको अच्छी तरह स्नेह से अनुभव कर सकॅूं। बाबा! मैं तुम्हें चाहता हॅूं और तुम मुझे चाहते हो इसलिये तुम वही करो जो तुम्हारी इच्छा है, मैं तो तुम्हारी इच्छा का अनुसरण करूंगा। अज्ञानता से कभी कभी मुझे लगता है कि सांसारिक मित्र मेरे सच्चे रक्षक हैं और मुझे आवश्यकता पड़ने पर परलोक तक साथ देंगे । हे प्रभु मेरी आॅंखें खोल दीजिये और यह अनुभव करा दीजिये कि इस संसार में तुम्हारे अलावा मेरा कोई नहीं है। बाबा! मुझे अपनी करुणामय कृपा वर्षा में डुबा दीजिये जिससे मैं अपने हृदय की गहराई में यह अनुभव करने लगॅूं कि केवल तुम ही मेरे अंतिम आश्रय हो।
टिप्पणी
तुमि चारणाई जगते केहाई:
इस पंक्ति में भक्त अनुभव करना चाहता है कि परमपुरुष के अलावा संसार में कोई अन्य आश्रय नहीं है। बाबा ने इसे इस प्रकार समझाया है-
‘‘ उसकी कृपा से वे ऊर्जा और शक्ति पायेंगे और उसी से आगे बढ़़ेंगे। उसकी कृपा के विना कोई भी एक कदम आगे नहीं बढ़ सकता है। इसलिये लोगों को यह हमेशा याद रखना चाहिये कि जो भी प्रगति वे करते हैं परमपुरुष की इच्छा से करते हैं। परमपुरुष का यह कर्तव्य है कि वे उन्हें आगे बढ़ाने में सहायता करें। परमपुरुष पर इस प्रकार की शतप्रतिशत निर्भरता शास्त्रों में ‘‘प्रपत्ति ‘‘ के नाम से जानी जाती है। साधकों को अपने मन में प्रपत्ति की भावना सदैव जाग्रत रखना चाहिये कि जो कुछ भी विश्व में घटित हो रहा है या जो कुछ भी सद्गुण उसे प्राप्त हुए हैं वे परमपुरुष की कृपा से ही हैं। वह सभी के प्रभु हैं, वे मशीन को चलाने वाले हैं और मैं मशीन हॅूं।
- Trans: Dr. T.R.S.
Note: If you would like a copy of the audio file of this PS let us know.
== Section 4 ==
Neohumanistic devotional song
"Tomáre smariyá supath dhariyá, kariyá jábo ámi tomári káj...." Prabhat Samgiita #2181
Purport:
O' Parama Purusa, remembering You, I will move on the righteous path. By this way I will go on serving You - fulfilling Your desire. O' the dearmost Jewel of my mind, by Your grace always I will move towards You - forgetting the past, removing the staticity, and avoiding all sorts of dogma. I will go close to You, O’ Manoraj [1].
O' Divine Entity, Baba, by Your grace, with the stroke of my feet, I will crush all my selfishness. And, by Your grace, I will look towards everyone's needs and requirements. I will engage myself in everyone's service. Everyone's happiness is my happiness. This very idea I will contemplate in a new way from today onwards. I will no longer remain self-centered from today.
Baba, O' Supreme One, thinking about Your love and Your greatness, & ideating on You, I shall become Yours. By Your grace, I will become one with You. All my narrowness will be destroyed and my whole existence will be transformed into vastness. O' my Lord, You are so gracious. With Your divine touch, my whole existence will be vibrated in ecstasy. You will graciously qualify me according to Your liking & I will be transformed. By this way, I will serve You according to Your desire.
Baba, remembering You, I will move on the righteous path - the path of sadhana, service, & sacrifice...
Note For Prabhat Samgiita #2181:
[1] Manoraj: One of the names of Parama Purusa is manoraj - the Entity who resides in the mind.
Note: If you would like a copy of the audio file of this PS let us know.
== Section 5 ==
Re: Who does what in their later days of life
Re: Who does what in their later days of life
An excellent article. Could possibly strengthen it by going a step further back into history to see what the elderly belonging to the other psychological types thought about in their last moments.
The information might help to provide empirical evidence of the psychological characteristics of each personality type, particularly their thoughts on the "unfinished business" in their lives.
The information could possibly be obtained from ancient literature, poetry, scripture, etc.
Someone with an academic interest in the social cycle may wish to investigate.
Birendra
Here is a link to the letter - "Who does what..."
== Section 6 ==
Re: What to do in these circumstances
Re: What to do in these circumstances
I think I like this piece, so apt and inspiring.
Thanks and Namaskar
Bhavesh
Here is a link to the letter - "What to do..."
== Section 7
==
Links
Here are three recent letters from New Bulletin:
Links
Here are three recent letters from New Bulletin:
Bait
kiirtan is happening
What to do in these circumstances in the atmosphere of groupism
Dogma of photo of deceased in death ceremony
Here are other important topics:
Degraded monks misguiding margiis
Lucid story of srsti cakra
What to do in these circumstances in the atmosphere of groupism
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