Baba
This email contains five sections:
1. You must be the harbingers - Ananda Vanii
2. End Quote: Sadhana when and why...
This email contains five sections:
1. You must be the harbingers - Ananda Vanii
2. End Quote: Sadhana when and why...
3. Bangla Quote: পর জন্মের কথাটা ভাল ভাবে মনে থাকে
4. PS #218: हे परम पुरुष बाबा! तुम मेरे पिता, माता भाई और अंतरंग सखा हो।
5. Links
You must be the harbingers - Ananda Vanii #36
"Clouds cannot overcast the sun for a long time. The creatures of darkness never want the expansive exaltation of human society. Even then, human beings shall march ahead. No one can arrest the speed of their progress. You must be the harbingers, you must be the pioneers of this victorious march. See that not a single individual lags behind."
Note: The above is one of Baba’s original Ananda Vaniis. These original and true Ananda Vaniis are unique, eternal guidelines that stand as complete discourses in and of themselves. They are unlike Fake Ananda Vaniis which are fabricated by most of the groups - H, B etc.
Baba says, "Regarding age, it might be appropriate to say that there are basically four stages in human life. In the first stage, the primary duty of the human being is to receive knowledge and do dharma sadhana. In the second stage, one must fulfill worldly duties and perform dharma sadhana. In the third stage, one must see to any remaining family responsibilities and perform dharma sadhana. Finally, in the fourth stage, when the human body has become incapable of performing worldly duties, one must do dharma sadhana alone. So there are no barriers of age as far as the requirements for a sadhaka are concerned." (1)
Note: Some of the religions preach that one should only spend their later years for contemplative activities and the rest of the life should be spent on worldly affairs. In Ananda Marga, we do not subscribe to such a belief. Sadhana is to be performed from the earliest possible moment and extended through the course of one's entire life. So many other worldly duties and responsibilities will come and go, but throughout life one must be vigilant in the practice of dharma sadhana. Waiting till old age will not do. In old age, both body and mind are not adequately equipped to take on great, new endeavours like sadhana etc. So those of advanced age are unable to embark on the path of sadhana. Whereas those who have been practicing since childhood can certainly manage their sadhana practice in their later years. For them there is no problem.
Reference
1. Ananda Vacnamrtam-3, The Requirements for Sádhaná
4. PS #218: हे परम पुरुष बाबा! तुम मेरे पिता, माता भाई और अंतरंग सखा हो।
5. Links
You must be the harbingers - Ananda Vanii #36
"Clouds cannot overcast the sun for a long time. The creatures of darkness never want the expansive exaltation of human society. Even then, human beings shall march ahead. No one can arrest the speed of their progress. You must be the harbingers, you must be the pioneers of this victorious march. See that not a single individual lags behind."
Note: The above is one of Baba’s original Ananda Vaniis. These original and true Ananda Vaniis are unique, eternal guidelines that stand as complete discourses in and of themselves. They are unlike Fake Ananda Vaniis which are fabricated by most of the groups - H, B etc.
== Section 4
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Sadhana when and why:
in childhood, youth, adult life, and old age
in childhood, youth, adult life, and old age
Baba says, "Regarding age, it might be appropriate to say that there are basically four stages in human life. In the first stage, the primary duty of the human being is to receive knowledge and do dharma sadhana. In the second stage, one must fulfill worldly duties and perform dharma sadhana. In the third stage, one must see to any remaining family responsibilities and perform dharma sadhana. Finally, in the fourth stage, when the human body has become incapable of performing worldly duties, one must do dharma sadhana alone. So there are no barriers of age as far as the requirements for a sadhaka are concerned." (1)
Note: Some of the religions preach that one should only spend their later years for contemplative activities and the rest of the life should be spent on worldly affairs. In Ananda Marga, we do not subscribe to such a belief. Sadhana is to be performed from the earliest possible moment and extended through the course of one's entire life. So many other worldly duties and responsibilities will come and go, but throughout life one must be vigilant in the practice of dharma sadhana. Waiting till old age will not do. In old age, both body and mind are not adequately equipped to take on great, new endeavours like sadhana etc. So those of advanced age are unable to embark on the path of sadhana. Whereas those who have been practicing since childhood can certainly manage their sadhana practice in their later years. For them there is no problem.
Reference
1. Ananda Vacnamrtam-3, The Requirements for Sádhaná
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পর জন্মের কথাটা ভাল ভাবে মনে থাকে
“কিছু মানুষের হয় যে পূর্বজন্মর কথাটা হুৰহু চিত্রটাই মনে থাকে | এবং সাধারণতঃ সেইগুলো হয়, যদি সে খুৰ উন্নত মানুষ হয়, যার ইচ্ছা-মৃত্যু হয়েছে | অথবা দ্বিতীয় হয় যে মানুষটা সজ্ঞানে মরেছে | আচ্ছা, মরৰার সময় জ্ঞান ছিল | আর তৃতীয় জিনিসটা হয়, যদি সে মানুষটা accident-এ মরে থাকে | এই তিন রকম ক্ষেত্রে পর জন্মের কথাটা ভাল ভাবে মনে থাকে |” (1)
Reference
1. MGD 19 December 1978 Kolkata
हे परम पुरुष बाबा! तुम मेरे पिता, माता भाई और अंतरंग सखा हो। कृपा कर अपनी शरण में बनाये रखिये।Prabhat Samgiita पीएस 218 पिता माता बंधु सखा आन्धारे आलोक वर्तिका...
भावार्थ
हे परम पुरुष बाबा! तुम मेरे सर्वाधिक निकट और प्यारे हो। तुम इतने निकट हो यह तुम्हारी कृपा है। तुम मेरे पिता , माता भाई और अंतरंग सखा हो। तुम एकमात्र मेरे सबकुछ हो। तुम वह दिव्य प्रज्वलित दीप हो जो मेरे जीवन में हमेशा सच्चे पथ पर चलने के लिये मार्गदर्शन देता है। तुम हर जगह हो, तुम्हारी कृपा से कोई भी अकेेला और असहाय नहीं हैं। तुम हमेशा सबके पास सहकर सावधानीपूर्वक सबको अवलोकन करते रहते हो तुम मेरे हृदय में हमेशा रहते हो।
टेक- मेरे अंधकरमय जीवन में तुम चमकते प्रकाश स्तंभ हो जो मुझे सदैव मार्गदर्शन देता है। जब मैं अंधकार में भटकने लगता हूँ और भ्रमित हो जाता हॅूं तो तुम तत्काल मुझे सहायता करने आ जाते हो। तुम वह दिव्य प्रकाश श्रोत हो जो मुझे सदा सही रास्ते पर ले जाता है।
हे परम सत्ता! समस्यायें कितनी ही कठिन क्यों न हों तुम अपनी कृपा से सदैव ही नर्मस्पर्श के साथ हल करने के लिये वहाॅ उपस्थित रहते हो। दुख के काॅंटों में तुम कमल हो और सूर्य की तपन में चंदन जैसी शीतलता देने वाली गुणकारी मरहम हो। हैं जो दुखों ओर कष्टों को दूर करती है और तुम प्रज्जवलित अग्नि की झुलसाती ऊष्मा में चंदन की ताजा ठंडक हो । हे दिव्य तुम एक मात्र संरक्षक हो। वे जो सब कुछ खो बैठते हैं उनके लिये तुम पारस मणि हो।जब कोई सब कुछ खो चुकता है तो उस अंधेरी घड़ी में तुम ही उसके सहारे बनते हो। तुम ही वह दिव्य रत्न हो जो अपनी निकटता से अन्यों को चमकीले रत्नों में रूपान्तरित कर देते हो। तुम्हारे स्पर्श से इकाई सत्ता दिव्य सत्ता हो जाती है यह तुम्हारी अहेतुकी कृपा ही है। हे मेरे प्रभु! तुम सबसे अच्छे हो, गुलाबों के सुंदर बगीचे में जहाॅं पर हर फूल सुगंध विखेर रहा होता है उन सबमें तुम सबसे शानदार होते हो, सबसे सुंदर होते हो। इस संसार में तुम सबसे तेजस्वी हो।
टेक- मेरे अंधकरमय जीवन में तुम चमकते प्रकाश स्तंभ हो जो मुझे सदैव मार्गदर्शन देता है। जब मैं अंधकार मतें भटकने लगता हूँ और भ्रमित हो जाता हॅूं तो तुम तत्काल मुझे सहायता करने आ जाते हो। तुम वह दिव्य प्रकाश श्रोत हो जो मुझे सदा सही रास्ते पर ले जाता है।
बाबा, हे दिव्य सत्ता! तुम सबके कारण हो, तुम सबके श्रोत हो और सब के उद्गम भी। तुम हो इसलिये मैं हॅूं। तुम मेरे जीवन की साॅंस हो, तुम्हारे विना मेरा पूरा अस्तित्व अर्थहीन है। तुम मेरे सबसे प्रिय और मेरे सब कुछ हो, केवल तुम ही मेरे हृदय के दिव्य दीपक हो, कृपा कर अपनी दिव्य शरण में बनाये रखिये।
टेक- मेरे अंधकरमय जीवन में तुम चमकते प्रकाश स्तंभ हो जो मुझे सदैव मार्गदर्शन देता है। जब मैं अंधकार मतें भटकने लगता हूँ और भ्रमित हो जाता हॅूं तो तुम तत्काल मुझे सहायता करने आ जाते हो। तुम वह दिव्य प्रकाश श्रोत हो जो मुझे सदा सही रास्ते पर ले जाता है।
टिप्पणी
दुख के काॅंटों में तुम कमल हो - यहाॅं गीत में कहना यह है कि जब कभी भक्त कष्टों के बीच संधर्ष कर रहा होता है तो वे ही उन आघातों से जूझ कर उसे बचाते हैं, जूझने का साहस देते हैं और उसे सफलता मिल जाती है, जिस प्रकार कमल के तने में अनेक काॅंटे होते हैं फिर भी कमल का फूल शीर्ष पर खिला रहता है।
“কিছু মানুষের হয় যে পূর্বজন্মর কথাটা হুৰহু চিত্রটাই মনে থাকে | এবং সাধারণতঃ সেইগুলো হয়, যদি সে খুৰ উন্নত মানুষ হয়, যার ইচ্ছা-মৃত্যু হয়েছে | অথবা দ্বিতীয় হয় যে মানুষটা সজ্ঞানে মরেছে | আচ্ছা, মরৰার সময় জ্ঞান ছিল | আর তৃতীয় জিনিসটা হয়, যদি সে মানুষটা accident-এ মরে থাকে | এই তিন রকম ক্ষেত্রে পর জন্মের কথাটা ভাল ভাবে মনে থাকে |” (1)
Reference
1. MGD 19 December 1978 Kolkata
== Section 2 ==
हे परम पुरुष बाबा! तुम मेरे पिता, माता भाई और अंतरंग सखा हो। कृपा कर अपनी शरण में बनाये रखिये।Prabhat Samgiita पीएस 218 पिता माता बंधु सखा आन्धारे आलोक वर्तिका...
भावार्थ
हे परम पुरुष बाबा! तुम मेरे सर्वाधिक निकट और प्यारे हो। तुम इतने निकट हो यह तुम्हारी कृपा है। तुम मेरे पिता , माता भाई और अंतरंग सखा हो। तुम एकमात्र मेरे सबकुछ हो। तुम वह दिव्य प्रज्वलित दीप हो जो मेरे जीवन में हमेशा सच्चे पथ पर चलने के लिये मार्गदर्शन देता है। तुम हर जगह हो, तुम्हारी कृपा से कोई भी अकेेला और असहाय नहीं हैं। तुम हमेशा सबके पास सहकर सावधानीपूर्वक सबको अवलोकन करते रहते हो तुम मेरे हृदय में हमेशा रहते हो।
टेक- मेरे अंधकरमय जीवन में तुम चमकते प्रकाश स्तंभ हो जो मुझे सदैव मार्गदर्शन देता है। जब मैं अंधकार में भटकने लगता हूँ और भ्रमित हो जाता हॅूं तो तुम तत्काल मुझे सहायता करने आ जाते हो। तुम वह दिव्य प्रकाश श्रोत हो जो मुझे सदा सही रास्ते पर ले जाता है।
हे परम सत्ता! समस्यायें कितनी ही कठिन क्यों न हों तुम अपनी कृपा से सदैव ही नर्मस्पर्श के साथ हल करने के लिये वहाॅ उपस्थित रहते हो। दुख के काॅंटों में तुम कमल हो और सूर्य की तपन में चंदन जैसी शीतलता देने वाली गुणकारी मरहम हो। हैं जो दुखों ओर कष्टों को दूर करती है और तुम प्रज्जवलित अग्नि की झुलसाती ऊष्मा में चंदन की ताजा ठंडक हो । हे दिव्य तुम एक मात्र संरक्षक हो। वे जो सब कुछ खो बैठते हैं उनके लिये तुम पारस मणि हो।जब कोई सब कुछ खो चुकता है तो उस अंधेरी घड़ी में तुम ही उसके सहारे बनते हो। तुम ही वह दिव्य रत्न हो जो अपनी निकटता से अन्यों को चमकीले रत्नों में रूपान्तरित कर देते हो। तुम्हारे स्पर्श से इकाई सत्ता दिव्य सत्ता हो जाती है यह तुम्हारी अहेतुकी कृपा ही है। हे मेरे प्रभु! तुम सबसे अच्छे हो, गुलाबों के सुंदर बगीचे में जहाॅं पर हर फूल सुगंध विखेर रहा होता है उन सबमें तुम सबसे शानदार होते हो, सबसे सुंदर होते हो। इस संसार में तुम सबसे तेजस्वी हो।
टेक- मेरे अंधकरमय जीवन में तुम चमकते प्रकाश स्तंभ हो जो मुझे सदैव मार्गदर्शन देता है। जब मैं अंधकार मतें भटकने लगता हूँ और भ्रमित हो जाता हॅूं तो तुम तत्काल मुझे सहायता करने आ जाते हो। तुम वह दिव्य प्रकाश श्रोत हो जो मुझे सदा सही रास्ते पर ले जाता है।
बाबा, हे दिव्य सत्ता! तुम सबके कारण हो, तुम सबके श्रोत हो और सब के उद्गम भी। तुम हो इसलिये मैं हॅूं। तुम मेरे जीवन की साॅंस हो, तुम्हारे विना मेरा पूरा अस्तित्व अर्थहीन है। तुम मेरे सबसे प्रिय और मेरे सब कुछ हो, केवल तुम ही मेरे हृदय के दिव्य दीपक हो, कृपा कर अपनी दिव्य शरण में बनाये रखिये।
टेक- मेरे अंधकरमय जीवन में तुम चमकते प्रकाश स्तंभ हो जो मुझे सदैव मार्गदर्शन देता है। जब मैं अंधकार मतें भटकने लगता हूँ और भ्रमित हो जाता हॅूं तो तुम तत्काल मुझे सहायता करने आ जाते हो। तुम वह दिव्य प्रकाश श्रोत हो जो मुझे सदा सही रास्ते पर ले जाता है।
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दुख के काॅंटों में तुम कमल हो - यहाॅं गीत में कहना यह है कि जब कभी भक्त कष्टों के बीच संधर्ष कर रहा होता है तो वे ही उन आघातों से जूझ कर उसे बचाते हैं, जूझने का साहस देते हैं और उसे सफलता मिल जाती है, जिस प्रकार कमल के तने में अनेक काॅंटे होते हैं फिर भी कमल का फूल शीर्ष पर खिला रहता है।
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