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Saturday, October 24, 2015

बाबा भक्ति कथा


Baba

बाबा भक्ति कथा: कर्मकांडियों का उग्र विरोध
घर जाकर विरोध से मुक्ति मुझे मिल गयी – ऐसा नहीं है| वह तो और भी उग्र रूप से मेरे सामने आया| लोग यह सुनकर हैरान रह जाते कि मैंने शिखा – सूत्र का परित्यागकर दिया है| आनन्दमार्ग से वे खफा नहीं थे| वे खफा थे तो इसलिए कि यह संस्था उन लोगो की परंपरा में प्राप्त शिखा – सूत्र का परित्याग क्यों करा रही है| गांव में कुछ लोग मुझे हीनता से भी देखते| वे कहते की मैंने अपनी तथाकथित ‘महान’ परंपरा (शिखा – सूत्र) का परित्याग कर कोई अच्छा काम नहीं किया है| एक दिन मैं उनके बीच में पड़ ही गया| कई एक लोग मुझसे इस विषय पर बहस करना शुरू कर दिए| मैं कितनों का जवाब देता? तब मैंने कहा कि – “आप में से कोई एक आदमी हमसे इस विषय पर बात करें|” बातें हुई और वे निरुत्तर ही गए| उन्होंने कहा – “तुमनें क्यों जनेऊ और टीक उतर दिया” मैंने पूछा – “आप ही बताये इसे क्यों पहनते है? आपकी इससे अभी तक क्या आध्यात्मिक उन्नति हुई है?” उन्होंने कहा - “यह हमारी परंपरा है| ब्राह्मण को पहनना ही है|” मैंने पूछा कि तब शुद्र कोई नहीं पहने ब्राह्मण ही क्यों पहनता है? इसे धर्मं के साथ जोड़कर सभी पहनते है| यदि पहनने से धार्मिक उन्नति नहीं मालूम होती तो इसके धारण करने से फायदा ही क्या? आदमी कि धार्मिक उन्नति तो उसकी व्यक्तिगत वस्तु है जो उसकी साधना और नैतिकता पर आधारित है| यदि वह किसी में नहीं है तो बिचारा यह ‘शिखा – सूत्र’ क्या धार्मिक उन्नति करा सकता है? जिसका अपना ही अस्तित्व स्थूल है - भला वह सुक्ष्म का दिग्दर्शन कैसे करा सकता है आदि – आदि       ? लेकिन वे अपनी हार मानने वाले भी नहीं थे और अंदर ही अंदर तथा समय आने पर सामने भी हमसे तर्कहीन असहमति व्यक्त करते| आनन्दमार्ग का दर्शन सुनकर अनेको तथाकथित ‘शिखा-सूत्र धारी’ हमारे सामने यह प्रस्ताव रखते कि इसके धारण के साथ ही उन्हें आनन्दमार्ग में साधना कि दीक्षा दि जाये| श्री पद्मकांत ठाकुरजी तथा श्री वासुदेव प्रसाद सिंह जी जो वही पर कैप्टोग्राफी इंस्पेक्टर थे – से बातचीत के क्रम में मैंने दर्शन की जानकारी अल्प परिमाण में प्राप्त की थी - वही मेरी पूंजी थी| किन्तु, वही मेरी छोटी सी पूंजी उन कर्मकांडियों पर भारी पड़ रही थी|

बाबा मुझे लगते हैं - गुरु से भी अधिक ऊपर, परमात्मा से भी ऊपर यदि कोई हैसियत हैं तो 


वह समय भी आया और पता चला, देखा कि मेरे परम आत्मीय बाबा साक्षात् महासंभूति, साक्षात् ब्रह्म है – शायद उससे भी ऊपर| मैं कोई दार्शनिक नहीं, कोई विद्वान भी नहीं| किसी खास एक विषय में भी मेरी कोई दक्षता नहीं है| और बिना छुपाये यह भी कह देता हूँ कि मैं एक अत्यन्त अधूरा व्यष्टि हूँ| लेकिन यहाँ बिना अतिरंजित किये अपने ह्रदय की बात रख रहा हूँ| सच्ची बात यह है कि बाबा मुझे गुरु से भी अधिक ऊपर, परमात्मा से भी ऊपर यदि कोई हैसियत हैं (मैं नहीं जानता की वह अवस्था क्या है) वे वह लगते हैं| पाठक मेरे इस भाव को अतिशयोक्ति नहीं समझे| इसे मैंने अत्यन्त ईमानदारी से कहा है|

परम प्रभु, बाबा चरण में
देवकुमार

Shrii Bhakti jii presents this story:
- We are very grateful to Shrii Bhakti for his immense contribution of putting the hardly legible material into a usable electronic format. Without his efforts it would not have been possible to publish this story. - Eds

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