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Saturday, October 10, 2015

बाबा भक्ति कथा: रूढ़िवादियों का प्रचण्ड विरोध

Baba

बाबा भक्ति कथा: रूढ़िवादियों का प्रचण्ड विरोध

दीक्षा लेने के पूर्व तथा बाद में साधकों को किस स्थिति से गुजरना पड़ता है - इसको मैं अति संक्षिप्त रूप से इस लिये प्रस्तुत कर रहा हूँ ताकि यह मालूम हो सके कि ’गुरू’ किस प्रकार भक्त पर कृपा करते है तथा साधक को समाज मे कितना संग्राम करना पड़ता है। अभी इस विषय का महत्व कम हो सकता है क्योंकि प्रत्येक आनन्दमार्गी को इसका अनुभव है। लेकिन जो नये साधक होंगे या आने वाले समय मे लोग जानकारी प्राप्त कर शायद लाभ उठा सकेंगे। दीक्षा लेने के उपरांत जब मैने दो-चार दिनो तक साधना की तो विचित्र अनुभूतियों को पाकर मैने मह्सूस किया कि मैं कहाँ पहाड़तल्ली मे था और् अब कहाँ उससे ऊँचाई पर आ गया। जो हो, यह रास्ता मनुष्य के विचार को अवश्य ही ऊँचाई पर ले जाने वाला है। जो हुआ सो ठीक ही हुआ। सब परमात्मा की कृपा से होता है।


आप ब्राह्मण आदमी शिखा-सूत्र का परित्याग कर दिये।
 अब आपको हम गोड़ (प्रणाम) कैसे लगेंगे?


लेकिन बाधा समाप्त नही हुई बल्कि, और् बड़े रूप मे सामने आयी। बी. एम. पी. ३ (बिहार सैनिक पुलिस-३) .... मे दो ’पाण्डेय’ महाशय थे। एक तो हमारे तथाकथित ’स्वजातीय’ तथा दूसरे तथाकथित ’भूमिहार ब्राह्मण्’ थे। हमारे तथाकथित स्वजातीय पाण्डेय जी जो वहाँ एक कनिष्ट-अधिकारी थे - हमसे कहने लगे - "राम - राम, यह तुमने क्या किया? शिखा-सूत्र का परित्याग कर दिया? अब् तुम ’ब्राह्मण’ कैसे कहे जाओगे? तुमसे (उनका कहने का मतलब हमारे परिवार् से था) तो कोई शादी-विवाह कि रिस्ता भी नही जोड़ेगा।" तुलसीकृत रामायण की कुछ चौपाईयों तथा कुछ संस्कृत श्लोकों को कहकर तथा उसका उलटा-सीधा अर्थ समझाकर मुझे दिगभ्रमित करने की कोशिश करते। और दूसरे पाण्डेय जी की कथा? वे कहते - "ऎ पंडित जी, आप ब्राह्मण आदमी शिखा-सूत्र का परित्याग कर दिये। अब आपको हम गोड़ (प्रणाम) कैसे लगेंगे? लोग अब आपको पूजेगा कैसे?"


 ढोंगिओं का कड़ा विरोध मुझे कितना सहना पड़ा


 कुछ देर के लिये मैं सोच मे पड़ जाता। फिर अकेला पड़ने पर और चिन्तन करने पर मेरा निष्कर्ष होता - "धत तेरे की। पैर नही पूजेंगे तो मत पूजें। उनके पैर पूजने से ही हमे कौन सा क्या मिल जाता है। लेकिन, यही क्या गारंटी है की इनके दिये सम्मान के लायक भी हम है? हम तो देखते है कि पंडित जी लोग ’लिख लोढ़ा पढ़ पत्थर’ (मूर्ख) होते है और पढ़े - लिखे अन्य लोग उन्हे प्रणाम करते है। क्या प्रणाम पाने से वे बड़े हो गये? यह सब ढोंग है। कुछ भी हो, आचार्य जी ने हमें बहुत बड़ी ’चीज़’ दी है। वह साधारण चीज़ नही है, जिसे छोड़ दिया जाय।" इस तरह का और इससे भी कड़ा विरोध मुझे कितना सहना पड़ा - आनन्दमार्गी भाईयों से कहने की जरूरत नहीं है। वे सब इन तरह के विरोधो के भुक्तभोगी हैं। समाज मे मार्गीयों का संग्राम समाप्त या कम हो गया है - वैसा भी नही, बल्कि वह तो अनवरत जारी है।

वहाँ पर धीरे-धीरे विरोध बाद मे कम होता गया और हमारी दृढ़्ता में भी बढ़ोतरी होती गई। जब लोगो ने देखा कि हम माननेवाले नही हैं - वे ठंडा पड़ गये। कुछ दिनो बाद जब मैं अपने गांव पर गया तो वहाँ का माजरा ही कुछ अलग किस्म का था। इस विषय मे आगे कुछ कहूँगा ।

परम प्रभु, बाबा चरण में
देवकुमार


Shrii Bhakti jii presents this story:
- We are very grateful to Shrii Bhakti for his immense contribution of putting the hardly legible material into a usable electronic format. Without his efforts it would not have been possible to publish this story. - Eds

बाबा भक्ति कथा: रूढ़िवादियों का प्रचण्ड विरोध + 2 more

Baba

This email contains three sections:

1.
Posting: बाबा भक्ति कथा: रूढ़िवादियों का प्रचण्ड विरोध
2. End Quote: Those who do intense sadhana can solve

3. Links


बाबा भक्ति कथा: रूढ़िवादियों का प्रचण्ड विरोध

दीक्षा लेने के पूर्व तथा बाद में साधकों को किस स्थिति से गुजरना पड़ता है - इसको मैं अति संक्षिप्त रूप से इस लिये प्रस्तुत कर रहा हूँ ताकि यह मालूम हो सके कि ’गुरू’ किस प्रकार भक्त पर कृपा करते है तथा साधक को समाज मे कितना संग्राम करना पड़ता है। अभी इस विषय का महत्व कम हो सकता है क्योंकि प्रत्येक आनन्दमार्गी को इसका अनुभव है। लेकिन जो नये साधक होंगे या आने वाले समय मे लोग जानकारी प्राप्त कर शायद लाभ उठा सकेंगे। दीक्षा लेने के उपरांत जब मैने दो-चार दिनो तक साधना की तो विचित्र अनुभूतियों को पाकर मैने मह्सूस किया कि मैं कहाँ पहाड़तल्ली मे था और् अब कहाँ उससे ऊँचाई पर आ गया। जो हो, यह रास्ता मनुष्य के विचार को अवश्य ही ऊँचाई पर ले जाने वाला है। जो हुआ सो ठीक ही हुआ। सब परमात्मा की कृपा से होता है।


आप ब्राह्मण आदमी शिखा-सूत्र का परित्याग कर दिये।
 अब आपको हम गोड़ (प्रणाम) कैसे लगेंगे?


लेकिन बाधा समाप्त नही हुई बल्कि, और् बड़े रूप मे सामने आयी। बी. एम. पी. ३ (बिहार सैनिक पुलिस-३) .... मे दो ’पाण्डेय’ महाशय थे। एक तो हमारे तथाकथित ’स्वजातीय’ तथा दूसरे तथाकथित ’भूमिहार ब्राह्मण्’ थे। हमारे तथाकथित स्वजातीय पाण्डेय जी जो वहाँ एक कनिष्ट-अधिकारी थे - हमसे कहने लगे - "राम - राम, यह तुमने क्या किया? शिखा-सूत्र का परित्याग कर दिया? अब् तुम ’ब्राह्मण’ कैसे कहे जाओगे? तुमसे (उनका कहने का मतलब हमारे परिवार् से था) तो कोई शादी-विवाह कि रिस्ता भी नही जोड़ेगा।" तुलसीकृत रामायण की कुछ चौपाईयों तथा कुछ संस्कृत श्लोकों को कहकर तथा उसका उलटा-सीधा अर्थ समझाकर मुझे दिगभ्रमित करने की कोशिश करते। और दूसरे पाण्डेय जी की कथा? वे कहते - "ऎ पंडित जी, आप ब्राह्मण आदमी शिखा-सूत्र का परित्याग कर दिये। अब आपको हम गोड़ (प्रणाम) कैसे लगेंगे? लोग अब आपको पूजेगा कैसे?"


 ढोंगिओं का कड़ा विरोध मुझे कितना सहना पड़ा


 कुछ देर के लिये मैं सोच मे पड़ जाता। फिर अकेला पड़ने पर और चिन्तन करने पर मेरा निष्कर्ष होता - "धत तेरे की। पैर नही पूजेंगे तो मत पूजें। उनके पैर पूजने से ही हमे कौन सा क्या मिल जाता है। लेकिन, यही क्या गारंटी है की इनके दिये सम्मान के लायक भी हम है? हम तो देखते है कि पंडित जी लोग ’लिख लोढ़ा पढ़ पत्थर’ (मूर्ख) होते है और पढ़े - लिखे अन्य लोग उन्हे प्रणाम करते है। क्या प्रणाम पाने से वे बड़े हो गये? यह सब ढोंग है। कुछ भी हो, आचार्य जी ने हमें बहुत बड़ी ’चीज़’ दी है। वह साधारण चीज़ नही है, जिसे छोड़ दिया जाय।" इस तरह का और इससे भी कड़ा विरोध मुझे कितना सहना पड़ा - आनन्दमार्गी भाईयों से कहने की जरूरत नहीं है। वे सब इन तरह के विरोधो के भुक्तभोगी हैं। समाज मे मार्गीयों का संग्राम समाप्त या कम हो गया है - वैसा भी नही, बल्कि वह तो अनवरत जारी है।

वहाँ पर धीरे-धीरे विरोध बाद मे कम होता गया और हमारी दृढ़्ता में भी बढ़ोतरी होती गई। जब लोगो ने देखा कि हम माननेवाले नही हैं - वे ठंडा पड़ गये। कुछ दिनो बाद जब मैं अपने गांव पर गया तो वहाँ का माजरा ही कुछ अलग किस्म का था। इस विषय मे आगे कुछ कहूँगा ।

परम प्रभु, बाबा चरण में
देवकुमार


Shrii Bhakti jii presents this story:
- We are very grateful to Shrii Bhakti for his immense contribution of putting the hardly legible material into a usable electronic format. Without his efforts it would not have been possible to publish this story. - Eds


== Section 2 ==


The section below demarcated by asterisks is an entirely different topic,

completely unrelated to the above material. It stands on its own as a point of interest.


****************************************************
Those who do intense sadhana can solve
all sorts of problems in an unprecedented manner

Baba says, “All the urges and longings should be channelised and directed towards the Supreme. If this is done indomitable psychic force and invincible spiritual energy will grow from within. This will enable people to solve all the world’s problems–economic, social, cultural, big and small. Unless one develops oneself in this way, as an ideal human being, one will not be able to solve any problem, no matter how madly one beats one’s chest or how loudly one shouts slogans.” (1)

Note: In the above quote Baba guides us that spirituality is an indispensable quality to solve the world’s social problems, become a Prout leader. That means only with the great force of true spirituality and by serving others can one be an ideal Proutist and lead the society along the golden road of welfare.

However some start thinking that non-spiritually oriented activists can be ideal Proutists. They get think that any atheistic so-called social leader who shouts aloud their battle cry for public welfare has all the requisite qualifications to be a Prout leader.

But Baba gives the reply to those harboring such an imbalanced idea by guiding us that, devoid of spirituality, a service mentality does not sprout in the mind.


Reference
1. Ananda Marga Ideology - 10, p.758
****************************************************


== Section 3 ==

Links

Here are earlier letters in this series

मेरा प्रथम बाबा दर्शन + Namby-pamby devotee (part 1)

Accusation of bhakta + बाबा कृपा: मेरी दीक्षा (part 2)

Here are other topics of interest

Group fight - bloody incident

Masquerading



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